Sunday 17 November 2019

पूर्वांचल विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का दूसरा दिन

ट्यूबलाइट और सीएफएल  मानव स्वास्थ्य पर डालते हैं बुरा प्रभाव- डॉ ढोबले

हाईड्रोजन एक स्वच्छ उर्जा ईधन का स्रोत-  प्रो0 नीरज खरे
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर में अत्याधुनिक तकनीक के लिए अल्ट्रासोनिक एवं पदार्थ विज्ञान विषयक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन रविवार को वक्ताओं ने आने वाले समय में तकनीकी के विविध पहलुओं पर चर्चा की। रविवार को सम्मलेन में 06  समानांतर स्तरों में 20  विशेष व्याख्यान ,03  प्लेनरी टाक एवं प्रतिभागियों द्वारा  40  शोध पत्र प्रस्तुत किये गए। यह सम्मेलन रज्जू भइया भौतिकीय विज्ञान अध्ययन एवं शोध संस्थान पूर्वांचल विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला अल्ट्रासोनिक सोसाइटी आफ इंडिया, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हो रहा है। 

ऊर्जा  बचत के लिए जागरूकता जरूरी 
आरटीएम नागपुर विश्वविद्यालय के डॉ संजय जे ढोबले ने कहा कि ऊर्जा के स्रोत भविष्य में कम होने वाले है। कोयला, तेल और गैस का दोहन बढ़ रहा है कुछ सालों में इनकी कमी होगी।  आज के समय में ऊर्जा की बचत के लिए उपकरणों का निर्माण करना जरुरी है जो इको फ्रेंडली के साथ-साथ ऊर्जा की कम खपत कर सकें। एलईडी ऊर्जा की बचत भी करते हैं और इको फ्रेंडली भी हैं। ट्यूबलाइट और सीएफएल लैंप मरकरी आधारित लाइट है जो खराब होने के बाद रिसाइकल नहीं होते एवं भूमि, जल एवं मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं।  इनका पर्याय केवल एलईडी लाइट है जो कि मरकरी मुक्त एवं 90% ऊर्जा की बचत करती है। इसके लिए लोगों को जागरूक होना होगा तब जाकर हम ऊर्जा को बचा सकेंगे।  

आने वाला समय क्वांटम कंप्यूटर  का है 
भारतीय तकनीकी संस्थान कानपुर के प्रो० अन्जन कुमार गुप्ता ने स्कैनिंग एवं ट्रांसमिशन माइक्रोस्कोप के द्वारा ग्रैफीन की इलेक्ट्रॉनिक विषमताओं के अध्ययन पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में कंप्यूटर का आकार एवं प्रकार पूरी तरह बदल जाएगा जिसे क्वांटम कंप्यूटर कहेंगे। इस कंप्यूटर के उपयोग से आने वाली मेमोरी डिवाइस इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन की इलेक्ट्रॉनिक अवस्थाओं से निर्धारित होगी। यह  कंप्यूटर में अत्यधिक स्मृति भंडार रहेगा और उसकी गति भी बहुत तीव्र होगी।

आर्यभट सभागार में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान नई दिल्ली के प्रो0 नीरज खरे ने कहा कि नैनोकम्पोजिट की मदद से थर्मोइलेक्ट्रीक जनरेटर व पिजोइलेक्ट्रिक  जनरेटर बनाया जा सकता है। जो उष्मा व कम्पन को अवशोषित कर विद्युत उर्जा में बदलता है। ऐसे  पदार्थ हरित ऊर्जा उत्पन्न करते है। बढ़ते हुए पर्यावरण प्रदूषण के कारण स्वच्छ उर्जा के उत्पादन के लिए पदार्थ  विकसित करने में अत्यन्त विकल्प मौजूद है। हाईड्रोजन एक स्वच्छ उर्जा ईधन का स्रोत है। इन्होंने कई नैनोकम्पोजिट को संश्लेषित किया है  
कुलपति प्रो डॉ राजाराम यादव ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किया। सम्मेलन के चेयरमैन प्रो बी. बी. तिवारी ने गतिविधियों का समन्वय किया। 

विभिन्न सत्रों में विशेषज्ञों ने  अपने व्याख्यान दिए। जिसमें मुख्य रूप से महाराष्ट्र के डॉ एन आर पवार, एमिटी विश्वविद्यालय नोएडा के आशीष माथुर, प्रो वंदना राय, सीआईपीडी लखनऊ के एन पांडे, डॉ केपी थापा, राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला के डॉ युधिष्ठिर कुमार यादव एवं महावीर सिंह आदि विद्वान रहें।
रज्जू भइया भौतिकीय विज्ञान अध्ययन एवं शोध संस्थान में आयोजित सत्रों में प्रो. निको डिक्लिरिक, प्रो.नीरज खरे,डॉ. पी पलनिचामी, डॉ. डी के  पांडेय, डॉ एन एन पांडेय, प्रो. वैशाली,प्रो. देवेश कुमार ने अध्यक्षता की। सम्मेलन में प्रो  विक्रम कुमार,प्रो विलास तभाने,डॉ अर्चना ,कुलसचिव सुजीत कुमार जायसवाल , डॉ   प्रमोद यादव, संयोजक डॉ गिरिधर मिश्र, डॉ पुनीत धवन, डॉ देवराज सिंह, डॉ मनोज मिश्र,डॉ दिग्विजय सिंह राठौर,डॉ सुनील कुमार , राकेश यादव ,डॉ अनिल यादव, डॉ मनीष गुप्ता, डॉ श्याम कन्हैया  समेत तमाम लोग उपस्थित रहे। 
                                                        32 प्रतिभागियों ने पोस्टर के माध्यम से दी प्रस्तुति  
जौनपुर।अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन 32 प्रतिभागियों ने पोस्टर के माध्यम से अपनी शोध की प्रस्तुति दी।  प्रतिभागियों से शिक्षकों, वैज्ञानिकों एवं शोधार्थियों ने  सवाल तमाम सवाल  किये।  प्रदर्शनी में बीएचयू की मोनिका ने ऑप्टिकल गुण पर अपने शोध को प्रस्तुत किया। अपशिष्ट पदार्थों से ऊर्जा का निर्माण कैसे करें  इस पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोधार्थी एके वर्मा ने   बड़े रोचक ढंग से अपनी प्रस्तुति दी।  बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के विवेक कुमार खरे ने रेल पटरी के टूटन के गहन अध्ययन पर पोस्टर लगाया।  इसी तरह कानपुर विश्वविद्यालय के चारू कांडपाल ने पेय पदार्थों के संरक्षित करने तरीके बताये।  प्रदर्शनी में विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों की संख्या अधिक रही।

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