Saturday 12 August 2023

 वृत्ति नहीं व्रत है पत्रकारिताः प्रो. राम मोहन पाठक

जोड़ना सिखाती है सामासिक संस्कृतिः प्रो. निर्मला एस. मौर्य

दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का समापन में आनलाईन जुड़े विदेशी साहित्यकार


वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में सामासिक संस्कृति के संवाहक: भाषा, साहित्य और मीडिया विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शनिवार को समापन सत्र हुआ। यह सत्र ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों मोड में चला। इसमें विश्व के कई देशों के शिक्षकों और साहित्यकारों ने प्रतिभाग किया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा मद्रास एवं मदनमोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो राममोहन पाठक ने कहा कि वर्तमान समय में भाषा की ताकत को समझना होगा। साथ ही भाषा की सामासिक संस्कृति को अपनाना होगा। भावना और व्यावहारिक स्तर पर साहित्य में सामासिक संस्कृति को लाना जरूरी है। उन्होंने कहा अपनी माटी अपना देश का चिंतन साहित्य से ही आया है। मीडिया पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि पत्रकारिता वृत्ति नहीं व्रत है। लोकतंत्र में संरक्षण का काम मीडिया ही करेगी।

अध्यक्षता करती हुई कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम का होना ही सामासिक संस्कृति का उदाहरण है। उन्होंने दक्षिण में हिंदी के क्षेत्र में किए गए काम का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि संस्कृति की संवाहक मीडिया है। सामासिक संस्कृति हमें जोड़ना सिखाती है। मीडिया को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि आज भी पत्रकारिता का धर्म मिशन ही है। काठमांडू के हिंदी के विद्वान एवं पत्रकार वीर बहादुर महतो ने कहा कि हमारी राजनीतिक सीमा अलग है लेकिन सांस्कृतिक रूप से एक हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि सामासिकता भारत के डीएनए में समाई हुई है। वर्तमान में समासिकता एक देश की नहीं अपितु पूरे विश्व स्तर का है। मध्य प्रदेश अकादमिक के निदेशक विकास दवे ने कहा कि समान रूप से प्रकट होने वाली कृति संस्कृति कहलाती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद जैसे शब्दों से परहेज करना चाहिए, जहां वाद आता है वहां परिवाद और विवाद दोनों आते हैं। पत्रकारिता में सुचिता का अभाव दिख‌ रहा है। विशिष्ट अतिथि डॉ ईश्वर चंद झा करूण ने कहा कि भाषा संस्कृति को जोड़ती है। उन्होंने तमिल भाषा के शब्दों को साहित्य से जोड़ने की वकालत की। डॉ. नितेश जायसवाल दोनों दिनों के सेमिनार की रिपोर्ट पेश की।

संचालन डॉ प्रमोद कुमार श्रीवास्तव अनंग, स्वागत आयोजन सचिव डॉक्टर मनोज मिश्र, धन्यवाद ज्ञापन डॉ धीरेंद्र चौधरी ने किया। इसके पूर्व पीएनबी के राजभाषा अधिकारी डॉ सुशांत शर्मा ने कहा कि आज की मीडिया के समानांतर सोशल मीडिया चल रही है। इस अवसर पर प्रो. बीबी तिवारी, प्रो रजनीश भास्कर, प्रो. वंदना दुबे, पीएनबी के रामबहादुर, प्रबंधक चंद्रेश्वर सिंह, अमित यादव, डा. कमरुद्दीन शेख, प्रो. देवराज सिंह, डॉ प्रमोद कुमार यादव, डॉ संतोष कुमार, डॉ राकेश यादव, डॉ राजबहादुर यादव, डॉ अमरेंद्र सिंह, डॉ प्रवीण कुमार सिंह, डॉ नीतेश जायसवाल, डॉ रसिकेश, डॉ. सुनील कुमार, डॉ दिग्विजय सिंह राठौर, डॉ अवध बिहारी सिंह, डॉ चंदन सिंह, डॉ जाह्नवी श्रीवास्तव, डॉ अनु त्यागी, डॉ मनोज पाण्डेय, डॉ. पीके कौशिक, सुशील प्रजापति आदि ने प्रतिभाग किया।

सामासिक संस्कृति की दिशा में कार्य करने की जरूरतः प्रो विनोद पांडेय

जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में सामासिक संस्कृति के संवाहक: भाषा, साहित्य और मीडिया विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शनिवार को तृतीय सत्र शुरू हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि गुजरात विद्यापीठ जनसंचार विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर विनोद पांडेय ने कहा कि वर्तमान समय में हमें सामासिक संस्कृति की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मीडिया एथिक्स पर चलती है सोशल मीडिया पर किसी का नियंत्रण नहीं है। पत्रकारिता की भाषा आक्रामक नहीं होनी चाहिए। यह लोक कंठ की भाषा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि साहित्य में संस्कृति का होना जरूरी है। इस अवसर पर 50 से अधिक शोधार्थियों ने ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों मोड में अपने रिसर्च पेपर को प्रस्तुत किया। इस मौके पर जनसंचार विभाग के सहायक आचार्य डॉ दिग्विजय सिंह ने साइबर अपराध को लेकर अपनी प्रस्तुति दिया और वर्तमान में हो रहे साइबर अपराधों के प्रति जागरूक किया। डॉ सुनील कुमार ने शब्दों के संक्षिप्तता को लेकर कई उदाहरण दिए और हिंदी और अंग्रेजी के शब्दों का वर्तमान परिवेश में मिश्रित इस्तेमाल को उदाहरण सहित समझाया। पीएनबी राजभाषा अधिकारी डॉ सुशांत शर्मा ने रामायण काल का उदाहरण देते हुए सामासिक संस्कृति पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संबंध का आधार भाषा है। इससे समाज और साहित्य दोनों मिलते हैं। नार्वे के वरिष्ठ साहित्यकार और स्पाइल दर्पण के संपादक सुरेश चंद्र शुक्ल, इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के डा. दुर्गेश त्रिपाठी, प्रो. रमेश शर्मा, डा. कायनात काजी, एशियन आर्ट्स इंग्लैंड की डा. जया वर्मा, डा परमात्मा कुमार मिश्र आदि ने सामासिक संस्कृति के संवाहक: भाषा, साहित्य और मीडिया पर अपने उद्गार व्यक्त किए। सत्र का संचालन अर्पिता स्नेह ने किया। इस मौके पर पूर्व कुलपति प्रोफेसर पीसी पतंजलि, डॉ सुनील कुमार, डा. दिग्विजय सिंह राठौर, डॉ. अवध बिहारी सिंह,  डॉ चंदन सिंह, डॉ रसिकेश, डॉ जाह्नवी श्रीवास्तव, राहुल राय, अंकित सिंह, डा. वनिता सिंह, सोनम झा समेत कई शिक्षकों ने शोध पत्र पढ़ा।

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