Monday, 28 November 2011

बापू बाज़ार के माध्यम से विद्यार्थी समाज की वस्तुस्थिति को समझ रहे हैं...

बापू बाज़ार के माध्यम से विद्यार्थियों  का अलग तरीके से विकास को रहा हैं जो कक्षा में नहीं हो सकता.इस माध्यम से वह समाज की वस्तुस्थिति को समझ पा रहे हैं.इसके साथ ही उनके व्यक्तिव में विकृतियाँ उत्पन्न नहीं होंगी जो हमें समाज में आज दिखती  हैं. यह विचार वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुन्दर लाल जी के हैं जो डीसीएसके स्नातकोत्तर महाविद्यालय मऊ में २७ नवम्बर को लगे सातवें बापू बाज़ार में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित जनसमूह को संबोधित कर रहे थे..
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय या महाविद्यालय का काम  बस इतना नहीं होना चाहिए कि परीक्षा ले और डिग्री देकर छात्रों को समाज में ढ़केल दी.आज महाविद्यालय व समाज के बीच की दूरी  को पाटने  का समय हैं.आज जो लोग इस परिसर में लगे बापू बाज़ार में खरीददारी करने आये हैं वो कभी सोच भी नहीं सकते थे कि इस महाविद्यालय में आयेगे उनके बेंच,कुर्सिया और दीवारों को स्पर्श करेगे.
उन्होंने आगे कहाकि आज समाज में एक तरफ बहुत सारे ऐसे व्यक्ति हैं जिनके पास ढेर सारी सामग्रियां अनुपयोगी पड़ी हैं। वहीं दूसरी तरफ बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जिनका जीवन उन वस्तुओं के अभाव में चल पाना कठिन है। इसी बिंदु को ध्यान में रख करके उन सामग्रियों को एकत्रित कर गरीबों को उपलब्ध कराने का निश्चय किया है। उनका प्रतीकात्मक मूल्य इसलिए रखा गया है ताकि गरीबों का मान सम्मान किसी प्रकार से आहत न हो और उनकी सहायता भी हो जाये.यहाँ से सामानों को खरीदने वाले गर्व से कह सकते हैं कि वो भीख मांग के नहीं लाये हैं बल्कि खरीदकर लाये हैं.
मानव और प्रकृति के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि रोटी, कपड़ा और मकान तीनों की पूर्ति हमें प्रकृति से होती हैं.गाँधी जी ने कहा था प्रकृति से अपनी आवश्यकता भर ले और उसका तब तक प्रयोग करे जब तक उसका उपयोग हो सकता हैं.प्राकृतिक संसाधनों का पूरा प्रयोग हो इसलिए इस बाज़ार में इस्तेमालशुदा सामानों को लाया गया हैं.बापू बाजार के माध्यम से प्रकृति का सम्मान किया जा रहा .
नए ज़माने के माहौल पर उन्होंने कहा कि बहुत दुखद हैं कहाँ - कहाँ बम हैं हमें नहीं पता  हैं असुरक्षा का भाव सबके मन में रहता हैं. बापू ने अहिंसा का शस्त्र दिया था. बापू की ये सोच हमारे बच्चों के विचार- व्यवहार में आये ये जरुरी हैं
शिक्षक संघ के डा. देवेंद्रनाथ सिंह ने कहा कि यह बाजार आज भी बापू की प्रासंगिकता को प्रमाणित करता हैं.इसके माध्यम से दरिद्रनारायण की सही मायने में सेवा हो रही हैं.प्राचार्य डा. शिवशंकर सिंह ने कहाकि बापू मेले का आयोजन गांधी दर्शन एवं सिद्घांत को साकार करने का एक उपक्रम है।प्रबंध समिति के सचिव गौरी शंकर खंडेलवाल ने कहा कि हम हर गरीब को तो इस बाजार के माध्यम से वस्तुएं तो मुहैया नहीं करा सकते लेकिन जो सन्देश इसमें हैं वो लोगों की सोच बदलने में बहुत कारगर हैं.
एन एस एस समन्यवयक हितेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि अब तक बापू बाज़ार ने २५००० गरीबों को सामान उपलब्ध हो चुका   हैं.यह  पुनीत कार्य बिना एन एस एस की टीम के संभव नहीं हो पाता.कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख्य अतिथि ने सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण किया। छात्राओं द्वारा सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत के बाद डा. कमलेश राय ने गीत प्रस्तुत किया। इस बापू बाजार में मऊ के महाविद्यालयों की तरफ से स्टाल लगाए गए। 

Tuesday, 15 November 2011

सूचना - सप्रेषण तकनीक द्वारा नारी - सशक्तिकरण


विषय में दो मूल बिन्दु है: नारी सशक्तिकरण एवं सूचना - संप्रेषण तकनीक। नारी सशक्तिकरण के मामले में तो हम निरे ढोंगी है। जिस सांस्कृतिक परम्परा के हम वाहक है उसमें नारी को पूजते हैं ऐसा हम गर्व से कहते है, पर जिस सामाजिक वातावरण में हम रहते है वहां  नारी को घूरते है और अवसर मिलने पर उसका शोषण करते  हैं। स्थूल रूप में ही नहीं समस्त सूक्ष्म भावात्मक रूपों तक में, हम सभी इससे ग्रस्त है। समर्थ एवं प्रभावशालियों से नारी स्थूल रूप में त्रस्त है तो प्रचार माध्यमों द्वारा भावानात्मक रूप में त्रस्त है। नल की टोटी और जो साबुन के रैपर से लेकर मोबाइल और लैपटाप के प्रचार हेतु समाचार पत्र/ इलेक्ट्रोनिक मीडिया नारी के निखार और उसके भावपूर्ण भगिमाओं के प्रसार  का प्रदर्शन करते है, भावानात्मक रूप में शोषित करते है। सीताराम, राधाकृष्ण, उमाशंकर का उदाहरण देने वाला हमारा समाज अनेक सीताओं, राधाओं और उमाओं को उदर में ही समाप्त कर रहा है। देश के हर भाग में, हर धार्मिक समुदाय में हर सामाजिक एवं हर आर्थिक वर्ग में नर-नारी के संख्या प्रतिशत में बढ़ता अंतर इसका प्रमाण है।
सूचना-सप्रेषण तकनीक के प्रसार व्यवहार में हममें गर्व का भाव है। इस तकनीक ने हमारे जीवन , खान-पान , रहन-सहन , आचार-विचार, काम, व्यापार सभी को बदल कर रख दिया है। मोबाइल बिना हम गूंगे , बहरे हैं तो इंटरनेट बिना कूप-मंडूक। नारी सशक्तिकरण जैसी गम्भीर समस्या एवं सूचना-संप्रेषण तकनीक जैसा सशक्त माध्यम, सेमीनार का विषय अत्यन्त व्यापक है और इस पर, इससे सम्बन्धित पहलुओं  पर एक दिन नहीं, सप्ताहों और महीनों विमर्श चल सकता है। मैं कुछ बिन्दुओं पर संक्षेप में कुछ कहना चाहूंगा -
सूचना-सम्प्रेषण  तकनीक एवं नारी सशक्तिकरण पर अधिकांश अध्ययन सशक्तिकरण के दो बिन्दुओं पर केन्द्रित रहे है आर्थिक व राजनैतिक। सशक्तिकरण का राजनैतिक पक्ष तो राजनीति में उलझ गया है और नारी सशक्तिकरण का वास्तविक मुद्दा पीछे खिसक गया है। आर्थिक सशक्तिकरण पर किये गये अधिकांशतः अध्ययन अपेक्षाकृत संपन्न वर्ग की समस्याओं, सूचना-सप्रेषण तकनीक द्वारा उत्पन्न कार्य एवं सेवा क्षेत्र, कार्य स्थलों पर लिंग आधारित भेदभाव तथा नियामक मण्डलों में नारी भागीदारी की अल्पता आदि विषयों पर केन्द्रित रहे है। सामाजिक रूप में उपेक्षित एवं आर्थिक रूप से निर्बल वर्ग की नारियों की समस्याओं का जो एक विशाल संजाल है, उस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। सूचना-सप्रेषण तकनीक सम्पन्न और समर्थ वर्ग की आवश्यकताओं पर जितना केन्द्रित है, सम्पन्नता और सामर्थ्य  की धारा को विपन्नता और निर्बलता के नालो की ओर मोड़ने के प्रयासों में उतना सक्रिय नहीं है - सारा दिन गारा मिट्टी और ईट ढोने वाली, बांस  छील कर टोकरी बनाने वाली, सड़क किनारे फूल और सब्जी बेचने वाली महिलाओं के जीवन को सूचना-संप्रेषण तकनीक ने कितना छुआ और कितना सशक्त बनाया है, विचार का विषय है। दूरदर्शन के माध्यम से परोसे गये मनोरंजन से उसकी थकान कम हो सकती है, कुछ समय के लिए चिन्ता से मुक्ति हो सकती है पर उसका सशक्तिकरण नहीं कर पाती। उसकी गरिमा में वृद्धि नहीं करती, उसकी दूसरों पर निर्भरता में  कमी नहीं करती। निर्धनता उसे सूचना-संप्रेषण उपकरणों की उपलब्धता से दूर रखती है तो निरक्षरता वह भी अंग्रेजी भाषा के प्रति निरक्षरता उसे इन उपकरणों के प्रयोग से दूर रखती है। इस समस्या पर गम्भीर विचार की आवश्यकता है। नारी की निर्धनता, निरक्षरता और नर-निर्भरता शीघ्र समाप्त होने वाली समस्यायें नहीं है इनके निराकरण की अवधि लम्बी है। इसी लम्बी अवधि में नारियों को सूचना-संप्रेषण उपकरण उपलब्ध कराने तथा उपयोग कराने के प्रयास होने चाहिए। यहाँ  एक सुझाव है - हम 1200-1500 रू0 मूल्य का लैपटाप बना सकते हैं तो 50-60 रू0 का मोबाइल सैट भी बना सकते है जिसमें आवश्यक न्यूनतम सुविधायें उपलब्ध हो काल   भेजने, काल  प्राप्त करने तथा फोन बुक को खंगालने जैसी मूलभूत सुविधाओं वाले इस मोबाइल में फोन बुक में प्रविष्टी  शब्दों के बजाय चित्रो से हो सकती है। पुलिस के चित्र पर क्लिक कर वह निर्धन निरक्षर महिला आवश्यकता पड़ने पर अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस स्टेशन से सम्पर्क कर सकती है, नारी के चित्र पर क्लिक कर सहायता के लिए महिला संगठनों से सम्पर्क कर सकती है, नर्स के चित्र पर क्लिक कर डाक्टर से मेडिकल सलाह/सहायता मांग  सकती है, रूपये के चित्र पर क्लिक कर मण्डी से अपनी उपज के दैनिक भाव पूंछ  सकती है, घर के चित्र पर क्लिक कर परिवार से सम्पर्क बनाये रख सकती है, किताब पर क्लिक कर शिक्षा व टीवी पर क्लिक कर मनोरंजन के सूत्रों से जुड़ सकती है। बिना अक्षर-अंक साक्षरता के भी सूचना-सप्रेषण के कुछ साधन वह महिला प्रयोग कर पायें ऐसे प्रयास होने चाहिए।

(उदय प्रताप कालेज, वाराणसी में नवम्बर, 12, 2011 को आयोजित- सूचना - सप्रेषण तकनीक द्वारा नारी - सशक्तिकरण विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी  में बतौर मुख्य अतिथि अपना विचार रखते हुए माननीय कुलपति प्रो.सुंदर लाल जी )

Wednesday, 9 November 2011

गांधी जी के विचारों को मनसा-वाचा-कर्मणा आत्मसात करने की जरूरत

वीर बहादुर सिंह पूर्वाचल विश्वविद्यालय के संगोष्ठी भवन में बुधवार को आयोजित संगोष्ठी   'वर्तमान संदर्भो में गांधी की प्रासंगिकता' की   अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो.सुन्दरलाल ने कहा कि 
हर व्यक्ति गांधी बन सकता है। बशर्ते उनके बताए रास्ते पर चलते हुए अपनी जरूरतों को सीमित रखे। उन्होंने कहा कि गांधी ने सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर देश को आजादी दिलाई।  गांधी के विचार  आज और भी प्रासंगिक हो चले हैं . उन्होंने कहा कि  महात्मा गांधी जी के दर्शन,जीवन-मूल्य एवं कर्म की प्रेरणा लेकर इस देश में लाखों गांधी पैदा हुए जिन्होनें अपनें गांव-समाज के लिए कुछ न कुछ अवश्य किया.उन्होंने कहा कि गांधी बनना बहुत आसान है बस मनसा-वाचा-कर्मणा सत्यवादी होने की जरूरत है.

संगोष्टी के मुख्य अतिथि और विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा.प्रेमचंद पातंजलि ने चिंता जताते हुए कहा कि मौजूदा समय में भ्रष्टाचार लोगों की जीवन शैली में शुमार हो गया है। बगैर इसके निवारण के देश और समाज का विकास बाधित है। गांधी जी के हर दर्शन में समस्याओं का समाधान छिपा है। उन्होंने कहा कि मुद्दे शाश्वत हैं। मगर समाधान बदल दिए गए हैं। महात्मा गांधी के बाद से देश में कोई रोल माडल नहीं है। 

संगोष्ठी के वक्ता ,टीडी कालेज के पूर्व प्राचार्य डा.अरुण कुमार सिंह ने कहा कि गांधी के विचार सत्य और अहिंसा के बीच घूम रहे थे। गांधी जी धार्मिक थे, मगर वे धर्म का अर्थ नैतिकता से लगाते थे। श्री सिंह ने कहा कि धर्म ग्रन्थ बुद्धि और नैतिकता से परे नहीं हो सकते। गांधी राजनीति में धर्म के समन्वय के पक्षधर थे। 
गांधीवादी विचारक और संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो.प्रमोद पाण्डेय ने कहा कि गांधी के विचारों के बिना देश में कोई सिस्टम नहीं चल सकता। अफ्रीका में भारतीय होने के नाते अंग्रेजों से जो नफरत व घृणा मिली, जिस पर उन्होंने अपने देश में आकर आजादी का बिगुल फूंका। उन्होंने विदेशी कपड़ों की होली जलाई। हालांकि रवीन्द्र नाथ ठाकुर जैसे कुछ सहयोगियों ने उनके विचारों से असहमति भी जताई। गांधी ने देश के गरीबों व दलितों के मनोविज्ञान को पहचाना था। उन्होंने कहा कि गांधी जी के  विचारों की प्रासंगिकता आज भी है और कल भी रहेगी।
संगोष्ठी का सञ्चालन  डा.पंकज सिंह द्वारा किया गया. छात्र कल्याण अधिष्ठाता  प्रो.रामजी लाल नें उपस्थित सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया.इस मौके पर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक गण,प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारीगण सहित समस्त विद्यार्थी उपस्थित थे.  


Tuesday, 1 November 2011

बापू के आदर्शों की आज समाज को जरूरत

३०अक्टूबर को  चौधरी चरण सिंह किसान महाविद्यालय जखनिया गाजीपुर में विश्वविद्यालय के   राष्ट्रीय सेवा योजना  द्वारा आयोजित  बापू बाज़ार में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुन्दर लाल ने कहा कि बापू के विचारो को अपने व्यक्तित्व में समाहित करें.. बापू के आदर्शों की आज समाज को जरूरत हैं. बापू ने दरिद्रनारायण की बात की थी . हमें भी अपना काम करते समय इनका  ध्यान रखना चाहिए.कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  उन्होंने कहा कि हमें समाज के साथ जुड़ना होगा. हम दूसरों की अगर मदत करते हैं , सहायता करते हैं तो उसमें   सम्मान के भाव को समाहित करना होगा.
बापू बाजार में बतौर मुख्य अतिथि गलगोटिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो के एम त्रिपाठी ने  कहा कि आज उन्होंने कहा कि समय किसी का इंतजार नहीं करता. बापू बाज़ार में जो उत्साह दिख रहा हैं वो समय के साथ कभी कम नहीं होना चाहिए.बापू बाज़ार के माध्यम से पढ़ने वाले बच्चे जिस तरीके से समाज से सीधे जुड़ रहे हैं आज के समय में यह बहुत ख़ुशी की बात हैं.जो कुछ मैनें देखा  देखा वह  भाव विभोर कर देने वाला दृश्य  है. यह बापू बाज़ार महायज्ञ है इसमें हम सभी  मिल कर आहुति दे. यह बीज जो बोया गया हैं उसे मिलकर बड़ा करे. 
राष्ट्रीय सेवा योजना के राज्य संपर्क अधिकारी डॉ सत्येन्द्र बहादुर सिंह ने कहा कि एन एस एस से जुड़ने के  बाद यह हमारा कर्तव्य बनता हैं कि हम खुद भी जागरूक बने और दूसरों को भी जागरूक करे.श्री सिंह ने बहुत मार्मिक ढंग से नेत्रदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए एनएसएस के कार्यक्रम अधिकारियों से अपील की.
 चौधरी चरण सिंह किसान महाविद्यालय जखनिया गाजीपुर के प्रबंधक हरिनारायण यादव ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा बापू बाज़ार लगाने का मुझे जो सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं वह मेरे लिए गर्व की बात है.राष्ट्रीय सेवा योजना के डॉ हितेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि आज बापू बाज़ार में जिन लोगों ने भी अपना योगदान दिया हैं उन्हें गरीबों की दुआएं मिलेगी. उन्होंने कहा कि बापू बाज़ार अब तक हजारों गरीबों को आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध करा चुका हैं.बापू बाजार में ५० महाविद्यालयों  के  राष्ट्रीय सेवा योजना के  स्वयंसेवक   द्वारा जुटाये गए सामान को २-१० रुपए के प्रतीकात्मक मूल्य पर दिया गया. अपने मनपसंद के कपड़ो को लेने के लिए बूढ़े, बच्चे, महिलाएं एवं अन्य काफी उत्साहित दिखे. बच्चों को मुफ्त में खिलौने,कापी व किताब दिए गए.कोई बच्चा गुडिया पाकर खुश था तो कोई खिलौना  कार.बाजार से वापस जाते समय उनके चेहरे पर विजय भरी मुस्कान थी.