Tuesday 16 April 2024
पीयू परिसर के पाठ्यक्रमों के आवेदन की तिथि बढ़ी
पीयू के डॉ. धीरेंद्र का भारतीय पेटेंट प्रकाशित
नैनो कॉम्पोसीट मटेरियल को किया डिजाइन
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय परिसर स्थित रज़्जू भइया संस्थान के सेंटर फॉर रिन्यूएबल एनर्जी शोध केंद्र के विभागाध्यक्ष डॉ. धीरेन्द्र चौधरी का भारतीय पेटेंट प्रकाशित हुआ है। डॉ. चौधरी ने बताया कि इस पेटेंट के अन्तर्गत उनके द्वारा नए नैनो कॉम्पोसीट मटेरियल को डिजाइन किया गया है जिससे इस कॉम्पोसीट मैटेरियल का प्रयोग करने से ऑर्गैनिक सोलर सेल डिवाइसेस की दक्षता में बढ़ोतरी होती है | यह शोध उनके द्वारा भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान, कानपुर (आईआईटी, कानपुर) मे किया गया है। बताते चले कि डॉ. धीरेन्द्र चौधरी कम दर और उच्च दक्षता के सोलर सेल के विकास मे विशेष रूप से कार्य कर रहे है। इससे की इस प्रकार के सोलर सेल को जन सामान्य तक आसानी से पहुचाया जा सके। वैकल्पिक ऊर्जा के इस क्षेत्र में कार्य करने हेतु गत वर्ष डॉ. चौधरी को सर्ब-नई दिल्ली द्वारा एसआइआरइ फेलोशिप प्राप्त हुआ था जिसके अन्तर्गत इन्होंने जर्मनी के कोलोन विश्वविद्यालय मे 03 महीने तक सोलर सेल डिवाइसेस की दक्षता के विकास में शोध कार्य किया | डॉ. धीरेन्द्र चौधरी को विभिन्न फन्डिंग एजेन्सीस द्वारा 08 शोध अनुदान प्राप्त है जिसके अन्तर्गत वो वैकल्पिक ऊर्जा के विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान और विकास कार्य कर रहे है। इस अवसर पर कुलपति प्रो. वंदना सिंह ने खुशी व्यक्त किया तथा जन सामान्य के वर्तमान जरूरतों को ध्यान में रखते हुए शोध करने को कहा। इस अवसर पर प्रो. मानस पाण्डेय, निदेशक प्रो. प्रमोद यादव, प्रो. देवराज सिंह, प्रो. गिरिधर मिश्र, डॉ. दिग्विजय सिंह, डॉ. पुनीत धवन, डॉ. श्याम कन्हैया, डॉ. काजल डे, डॉ. मिथिलेश यादव आदि ने बधाई दी है |
दवाओं के प्रभाव को समझने में कंप्यूटेशनल केमेस्ट्री मददगार: प्रो वंदना सिंह
कार्यशाला के पंचम दिवस पर मॉलिक्युलर डॉकिंग पर हुआ व्याख्यान और प्रशिक्षण
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय परिसर स्थित प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) भौतिकीय विज्ञान अध्ययन एवं शोध संस्थान के रसायन विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री एंड मॉलिक्यूलर डिजाइन विषय पर सात दिवसीय कार्यशाला के पांचवें दिन आण्विक डॉकिंग पर व्याख्यान और प्रशिक्षण हुआ।इस अवसर पर वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो वंदना सिंह ने प्रतिभागियों को कंप्यूटेशनल केमेस्ट्री के विभिन्न उपयोगों से परिचित कराया। प्रो सिंह ने कहा कि विभिन्न विभिन्न अभिक्रियाओं को प्रयोगशाला में करने से पहले हम कंप्यूटर के माध्यम से विभिन्न तरीकों से उनके बारे में अध्ययन कर सटीक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। प्रोफेसर सिंह ने कहा कि कंप्यूटेशनल केमेस्ट्री की मदद से हम दवाओं का तथा विभिन्न पदार्थों के गुणों को जान सकते हैं।कार्यशाला के प्रथम सत्र में रसायन विभाग, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया डॉ. सुमित कुमार ने प्रतिभागियों को मॉलेक्युलर डॉकिंग तथा उसके प्रयोग के बारे में बताया। डॉ सुमित ने ऑटोडॉक की मदद से प्रोटीन और दवाओं के बीच डॉकिंग करके दिखाया और सिखाया।डॉ. सुमित ने कहा कि प्रोटीन, पेप्टाइड्स, न्यूक्लिक एसिड, कार्बोहाइड्रेट और लिपिड जैसे जैविक रूप से प्रासंगिक अणुओं के बीच संबंध सिग्नल ट्रांसडक्शन में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, दो इंटरैक्टिंग साझेदारों का सापेक्ष अभिविन्यास उत्पादित सिग्नल के प्रकार को प्रभावित कर सकता है इसलिए, डॉकिंग उत्पादित सिग्नल की शक्ति और प्रकार दोनों की भविष्यवाणी करने के लिए उपयोगी है। डॉ सुमित ने कहा कि आणविक डॉकिंग संरचना-आधारित दवा डिजाइन में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली विधियों में से एक है, इसकी वजह उपयुक्त लक्ष्य बाइंडिंग साइट पर छोटे अणु लिगेंड के बंधन-संरचना की भविष्यवाणी करने की क्षमता है । बाध्यकारी व्यवहार का लक्षण वर्णन दवाओं के तर्कसंगत डिजाइन के साथ-साथ मौलिक जैव रासायनिक प्रक्रियाओं को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
Monday 15 April 2024
नई दवाओं के खोज में आण्विक गतिशीलता महत्त्वपूर्ण: प्रो राज कुमार मिश्रा
Sunday 14 April 2024
सर्व समाज के हित का ध्यान रखा बाबासाहेब ने : प्रो. पाथर्डीकर
जयंती के उपलक्ष्य में सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की जन्म जयंती पर उनके कार्यों को याद करते हुए मुख्य वक्ता प्रो. अविनाश पाथर्डीकर ने डॉ अंबेडकर द्वारा किए सर्वसमाज के हित में किए गए कार्यों की विस्तार से चर्चा की । उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने एक वर्ग विशेष का ध्यान न रखते हुए संपूर्ण समाज के लिए कार्य किया । उन्होंने आर्य इन्वेजन सिद्धांत को नकारा। अपनी पुस्तक ’शूद्र कौन थे” में उन्होंने तथ्यों पर आधारित बताया कि आर्य इसी भारत की संतान हैं उन्होंने पश्चिमी इतिहासकार मैक्स मूलर के सिद्धांत को सिरे से नकार दिया। उन्होंने भारत के श्रम कानूनों को बनाया जो कि सर्वसमाज के लिए थे न कि किसी एक जाति वर्ग के लिए। परिणाम स्वरूप उसका भारत में सर्व समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। विश्वविद्यालय परिसर में उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई । इस अवसर पर डॉ. मनोज पांडेय, कर्मचारी नेता श्री स्वतंत्र कुमार , रघुनंदन, रामनाथ समेत विश्वविद्यालय के छात्र एवं अन्य कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
इस बीच विश्वविद्यालय परिसर में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में अंबेडकर जयंती के उपलक्ष्य में सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इसमें बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन एवं उनके राजनीतिक तथा सामाजिक योगदान के विषय में विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे गएI प्रतियोगिता में बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग संस्थान के छात्रों ने प्रतिभाग किया I इस प्रतियोगिता में बीटेक फाइनल ईयर के छात्र कौशल प्रताप प्रथम स्थान पर रहेI आलोक चौधरी को द्वितीय स्थान तथा अमन कुमार एवं स्वतंत्र त्रिपाठी को संयुक्त रूप से तृतीय स्थान प्राप्त हुआ I इस अवसर पर मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. संदीप कुमार सिंह ने कहा कि आजादी के 75 वर्षों के उपरांत यह साबित हो चुका है कि बाबा साहब की दूरदृष्टि ही थी जिसके कारण भारत निरंतर एक लोकतंत्र के रूप में विकसित होता गयाI आज हम दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र हैं I बाबा साहब ने महिलाओं सहित समाज के सभी कमजोर वर्गों के लिए कार्य किया I सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का संचालन विभाग के प्राध्यापक डॉ. अंकुश गौरव ने कियाI सभी प्राध्यापको एवं छात्रों द्वारा डॉ. अंबेडकर को नमन किया गया I इस अवसर पर डॉक्टर हेमंत कुमार सिंह ,डॉ. नवीन चौरसिया, डॉ. दीप प्रकाश सिंह ,डॉ. हिमांशु तिवारी, डॉ. शशांक दुबे के अलावा विभाग के अन्य छात्र- छात्राएं उपस्थित रहेI
Saturday 13 April 2024
न्यू टेक्नोलॉजी पर विद्यार्थियों को दिया गया प्रशिक्षण
दवा के शोध में उपयोगी है कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री: प्रो. राजाराम यादव
कंप्यूटेशनल केमेस्ट्री पर कार्यशाला के द्वितीय दिवस पर हुए कई व्याख्यान
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय परिसर स्थित प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) भौतिकीय विज्ञान अध्ययन एवं शोध संस्थान के रसायन विज्ञान विभाग द्वारा कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री एंड मॉलिक्यूलर डिजाइन विषय पर सात दिवसीय कार्यशाला के द्वितीय दिवस पर पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो राजाराम यादव, आईआईटी, पटना के डॉ. रंगनाथ सुब्रमण्यम एवं आईआईटी बीएचयू के डॉ. वी. रामनाथन का व्याख्यान हुआ। यह कार्यशाला विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के एक्सीलरेट विज्ञान स्कीम के अंतर्गत आयोजित की जा रही है।
प्रथम सत्र में प्रो. राजाराम यादव ने कहा कि कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री क्वांटम भौतिकी के सिद्धांत पर आधारित है। कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री की मदद से फार्मा के क्षेत्र में दवाओं को विकसित करने में मदद मिलती हैं। कंप्यूटेशनल केमेस्ट्री की मदद से नए मैटेरियल के संश्लेषण में मदद मिलती है। संश्लेषित नए मेटेरियल का प्रयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जा सकता है। प्रो. यादव ने कार्यशाला में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को शोध के लिए प्रेरित किया।
इस अवसर पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना के डॉ. रंगनाथ सुब्रमण्यम ने क्वांटम भौतिकी के सिद्धांत पर विकसित हुए विभिन्न कंप्यूटेशनल केमेस्ट्री के तरीकों पर प्रकाश डाला ।
इस अवसर पर आईआईटी बीएचयू के डॉ वी रामनाथन ने प्रतिभागियों को कंप्यूटेशनल केमेस्ट्री का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया। उन्होंने कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री के विभिन्न सॉफ्टवेयर का प्रयोग करना विद्यार्थियों को सिखाया।
सत्र की संचालन डॉ अजीत सिंह ने किया। अतिथियों का स्वागत रज्जू भैया संस्थान के निदेशक प्रो प्रमोद कुमार यादव ने किया। अतिथियों का परिचय कार्यशाला के संयोजक डॉ नितेश जायसवाल ने कराया। धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष डॉ प्रमोद कुमार ने किया। इस अवसर पर प्रो देवराज सिंह, प्रो मिथिलेश सिंह, डॉ अजीत सिंह, डॉ दिनेश वर्मा, डॉ मिथिलेश यादव, डॉ आलोक वर्मा आदि उपस्थित रहे।
Friday 12 April 2024
कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री से शोध किफायती: प्रो. राणा कृष्ण पाल सिंह
कंप्यूटेशनल केमेस्ट्री पर डीएसटी सर्ब प्रायोजित सात दिनी कार्यशाला का शुभारंभ
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय परिसर स्थित प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) भौतिकीय विज्ञान अध्ययन एवं शोध संस्थान के रसायन विज्ञान विभाग द्वारा कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री एंड मॉलिक्यूलर डिजाइन विषय पर सात दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन हुआ। यह कार्यशाला विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के एक्सीलरेट विज्ञान स्कीम के अंतर्गत आयोजित की जा रही है।उदघाटन सत्र के मुख्य अतिथि डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. राणा कृष्ण पाल सिंह ने कहा कि कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री में शोध की असीम संभावनाएं है। कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री से शोधात्मक प्रयोग करने में मदद मिलती हैं। कंप्यूटेशनल केमेस्ट्री के प्रयोग से शोध के परिणाम प्राप्त करने में आसानी होती है तथा यह बहुत किफायती भी होता है। प्रो सिंह ने कहा कि कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री की मदद से उच्च कोटि की दवा के शोध में मदद मिलती है। प्रो. सिंह ने प्रतिभागियों को कार्यशाला के पूर्ण मनोयोग से प्रतिभाग करने के लिए प्रेरित किया।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना के डॉ. रंगनाथ सुब्रमण्यम ने कंपटीशन केमिस्ट्री की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि गासियन के प्रयोग से कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला।इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद के प्रोफेसर अनिमेष कुमार ओझा ने डीएफटी के प्रयोग से रसायन विज्ञान में शोध की महत्ता पर प्रकाश डाला।सत्र की अध्यक्षता कर रहे रज्जू भैया संस्थान के निदेशक प्रो. प्रमोद कुमार यादव ने कहा कि कंप्यूटर आज के समय में शोध के आवश्यक हिस्सा है। बिना कंप्यूटर के शोध की कल्पना नहीं को जा सकती है। कार्यशाला की रूपरेखा कार्यशाला के संयोजक डॉ नितेश जायसवाल ने प्रस्तुत की। डॉ. जायसवाल ने कहा कि यह कार्यशाला विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा एक्सीलरेट विज्ञान स्कीम के अंतर्गत आयोजित की जा रही है। इस कार्यशाला में विभिन्न राज्यों के कई विश्वविद्यालय एवं संस्थाओं के 25 छात्र प्रतिभाग कर रहे हैं। कार्यशाला का संचालन शोध छात्र प्रिया सिंह ने किया । अतिथियों का परिचय डॉ. मिथिलेश यादव ने कराया । धन्यवाद ज्ञापन रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ प्रमोद कुमार ने किया l इस अवसर पर के डॉ दिनेश कुमार वर्मा, डॉ नीरज अवस्थी, डॉ. शशिकांत यादव, डॉ. श्याम कन्हैया सिंह, डॉ. आलोक वर्मा, डॉ. सौरभ सिंह, डॉ सुजीत, डॉ काजल डे, डॉ धीरेंद्र चौधरी तथा पीएचडी शोधार्थी और बड़ी संख्या में छात्र छात्राएं उपस्थित रहीं।
पूर्वांचल के छात्र नवोन्मेषी, लगनशील और मेहनती: शेखर आनंद
Thursday 11 April 2024
कार्यशाला में मिले ज्ञान का करें प्रयोग- प्रो वंदना सिंह
पीयू में रिमोट सेंसिंग विषयक कार्यशाला का समापन
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय स्थित रज्जू भैया संस्थान के अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेज विभाग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा चल रही सात दिवसीय कार्यशाला का गुरुवार को समापन हुआ. कार्यशाला में देश के दस प्रदेशों के विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थानों के 25 चयनित विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों ने इस कार्यशाला में प्रशिक्षण प्राप्त किया.
कुलपति प्रो वंदना सिंह ने समापन सत्र के पूर्व कुलपति सभागार में प्रमाण पत्र प्रदान किया. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि पूर्वांचल विश्वविद्यालय निरंतर शोध और शैक्षिक उन्नयन की दिशा में कार्य कर रहा है. उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला में आपको अपने विषय से सम्बंधित शोध एवं नवाचार की जो जानकारी प्राप्त हुई है उसे आप अपने अध्ययन में सम्मिलित कर जीवन में नई ऊंचाइयों तक पहुचेंगे. उन्होंने विभिन्न प्रदेशों से आए प्रतिभागियों से परिचय और कार्यशाला के बारे में फीडबैक लिया.
अंतिम दिन डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या के भू विज्ञान विभाग के डा. सौरभ सिंह ने जियोलॉजी के विभिन्न क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग तकनीकी के उपयोग पर व्याख्यान दिया तथा उसके अनुप्रयोगों पर चर्चा की । उन्होंने कहा कि रिमोट सेंसिंग तकनीकी का उपयोग व्यापक है एवं इसकी सहायता से विभिन्न वैज्ञानिक, भौगोलिक तथा भूगर्भीय परिवर्तन का आकलन व सतत् क्रम आसानी से पता लगाया जा सकता है। उन्होंने रिमोट सेंसिंग मैपिंग से संबंधित विभिन्न एक्सरसाइज कराया एवं आर्क जीआईएस सॉफ्टवेयर के अनुप्रयोगों के संबंध में विभिन्न जानकारियां साझा की। कार्यशाला के संयोजक डा. श्याम कन्हैया ने कार्यशाला की रिपोर्ट प्रस्तुत की. इस अवसर पर निदेशक प्रो. प्रमोद यादव, डॉ नीरज अवस्थी, डा. शशिकांत यादव, डा. सौरभ सिंह, डा. श्रवण कुमार एवं प्रतिभागी उपस्थित रहे.
पीयू के डा. आलोक वर्मा, अनुराग पाण्डेय फेलोशिप के लिए चयनित
Tuesday 9 April 2024
गंगा के मैदानी इलाकों में जल संकट भारत के लिए खतरा- डॉ. सुशील कुमार
नदियों के अध्ययन में उपयोगी है रिमोट सेंसिंग तकनीक : डा. अतुल सिंह
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय स्थित रज्जू भैया संस्थान के अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेज विभाग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यशाला के पांचवें दिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ डा. सुशील कुमार ने जल संरक्षण एवं जल स्रोतों का पता लगाने हेतु रिमोट सेंसिंग तकनीक की उपयोगिता पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में जल संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि अगर गंगा के मैदानी इलाकों में जल संकट बढ़ रहा है तो यह संपूर्ण भारतवर्ष के लिए बहुत बड़े खतरे का सूचक है। इसलिए नदियों, तालाबों व अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाना नितांत आवश्यक है। विश्व की 17 प्रतिशत जनसंख्या भारत में रहती है जो विश्व के कुल भूभाग का 2.5 प्रतिशत है। बढ़ती आबादी के इस दौर में नये जल संसाधन तलाशने होंगे और नए स्रोतों के संदर्भ में शोध करने की जरूरत है, रिमोट सेंसिंग तकनीकी का उपयोग इस दिशा में सकारात्मक परिणाम ला सकता है।पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय के डा. अतुल कुमार सिंह ने नदी विज्ञान के क्षेत्र में रिमोट सेंसिंग तकनीकी के उपयोग पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि भारत की नदियों के बनने का क्रम कहीं न कहीं हिमालय की उत्पत्ति से संबंधित है तथा हिमालय पर्वतमाला में होने वाली प्रत्येक भूगर्भीय घटनाओं से नदियों की प्रकृति प्रभावित होती है। नदियों में विपथन की अपनी प्रकृति होती है जो स्वाभाविक है तथा हम इसे रोक नहीं सकते । इसलिए नदी परिक्षेत्र में होने वाले प्रत्येक निर्माण एवं अन्य विकास योजनाओं से पहले नदी का पूर्व में विपथन एवं पथ विस्थापन की सटीक जानकारी होना आवश्यक है। इसलिए नदियों के अध्ययन में रिमोट सेंसिंग की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है। उन्होंने घाघरा नदी के पथ विस्थापन एवं उसके कारणों पर विस्तार से चर्चा की । उन्होंने कहा की नदी अपनी प्रकृति से अनुरूप व्यवहार करती रहती है जो बड़ी बाढ़ का कारण बनता है हम इसे रोक तो नहीं सकते परन्तु यदि नदियों की प्रकृति की वैज्ञानिक समझ के अनुसार विकास कार्य हो तो प्रत्येक वर्ष लाखों लोग विस्थापित होने से बच जाएंगे एवं बाढ़ आने पर त्रासदी का रूप नहीं लेगी।
तकनीकी सत्रों का संचालन कार्यशाला के संयोजक डा. श्याम कन्हैया ने किया। इस अवसर पर अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेज के विभागाध्यक्ष डॉ नीरज अवस्थी, डा. शशिकांत यादव, डा. सौरभ सिंह, डा. श्रवण कुमार एवं सभी प्रतिभागियों सहित विभाग के विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।
Monday 8 April 2024
मानव सभ्यता पर जलवायु परिवर्तन का हुआ गहरा असर- प्रो. ध्रुवसेन
बाढ़ नियंत्रण के अध्ययन में रिमोट सेंसिंग तकनीक की महती भूमिका- डॉ. मेधा झा
- पूर्वांचल विश्वविद्यालय में चल रही कार्यशाला में भू वैज्ञानिकों का हुआ व्याख्यान
- प्रो. बीएन सिंह और प्रो. प्रफुल्ल ने प्रतिभागियों से की चर्चा
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय स्थित रज्जू भैया संस्थान के अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेज विभाग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यशाला में सोमवार को लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ध्रुवसेन सिंह ने जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक आपदाओं पर उसके प्रभाव पर विस्तार से चर्चा की।उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर होने वाली प्रत्येक आपदाएं कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन पर आधारित है । उन्होंने कहा कि पृथ्वी के इतिहास में मानव सभ्यता के पहले भी जलवायु परिवर्तन होते रहे हैं परंतु आज की परिस्थितियों में मानवजनित गतिविधियों की वजह से उसकी दर प्रभावित हो रही है जो बड़ी चिंता का कारण है ।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की अपेक्षा पर्यावरण प्रदूषण में मानवजनित गतिविधियों का अधिक योगदान है। उन्होंने कहा कि प्रकृति अपना बैलेंस खुद बनाती है और अपनी जरूरतों का पूरा कर सकती है लेकिन वर्तमान समय में विकास की होड़ में प्रकृति पर बहुत बुरा असर हुआ है। प्रो. ध्रुवसेन ने से आर्कटिक पोल पर भारत के ग्लेशियरों के अध्ययन के लिए स्थगित भारत के स्टेशन हिमाद्रि की स्थापना एवं अन्य वैज्ञानिक आयामों पर विस्तार से चर्चा की।
द्वितीय सत्र में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बी. पी. सिंह ने विंध्य पहाड़ियों में पूरा-भूकंपीय तरंगों के परिणामस्वरूप बनने वाली विभिन्न संरचनाओं के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि सोनभद्र, मिर्जापुर चित्रकूट जिले की विंध्य पहाड़ियों में तमाम ऐसी संरचनाएं मिलती हैं जो ये सुनिश्चित करती हैं कि पूर्व में यह परिक्षेत्र भूकंप का बड़ा केंद्र था।
इसी क्रम में केन्द्रीय दक्षिण बिहार विश्वविद्यालय गया से आये प्रोफेसर प्रफुल्ल कुमार सिंह ने भूस्खलन एवं उसके अध्ययन में रिमोट सेंसिंग के उपयोग पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में पहाड़ी इलाकों में सड़कों के बनने से पहले रिमोट सेंसिंग तकनीकी के माध्यम से उनकी क्षमताओं एवं भविष्य में होने वाले नुकसान का पता आसानी से लगाया जा सकता है। उन्होंने उत्तराखंड राज्य के चकराता - कालसी रोड कॉरिडोर निर्माण एवं विभिन्न भूस्खलन के तथ्यों पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि किसी भी प्राकृतिक आपदा में हुए नुकसान का तात्कालिक रूप से आकलन करना एवं राहत पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती होती है । पहाड़ी इलाकों में प्रतिदिन कहीं न कहीं भूस्खलन होता रहता है जिससे मानीटर करने के लिए रिमोट सेंसिंग सबसे सुगम तकनीक है।
आई आई टी बीएचयू की विशेषज्ञ डा. मेधा झा ने रिमोट सेंसिंग तकनीक के माध्यम से नदियों पर होने वाले शोध पर अपने विचार व्यक्त किये । उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जल संरक्षण एवं बाढ़ नियंत्रण के अध्ययन में भी रिमोट सेंसिंग तकनीकी की महती भूमिका है। इस अवसर पर रज्जू भइया संस्थान के निदेशक प्रोफेसर प्रमोद यादव एवं प्रोफेसर देवराज सिंह ने बाह्य विशेषज्ञों का अंगवस्त्रम तथा स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। तकनीकी सत्रों का संचालन कार्यशाला के संयोजक डा. श्याम कन्हैया ने किया। इस अवसर पर अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेज के विभागाध्यक्ष डॉ नीरज अवस्थी, डा. शशिकांत यादव, डा. सौरभ सिंह, डा. श्रवण कुमार एवं सभी प्रतिभागियों सहित विभाग के विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।
पीयू में एक्सिस बैंक ने किया प्लेसमेंट ड्राइव
Saturday 6 April 2024
रिमोट सेंसिंग तकनीक देता है भूस्खलन की जानकारी: डा. प्रकाश सिंह
ब्रह्मांड की घटनाओं का थर्मामीटर है जीपीएसः डॉ. आरपी सिंह
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय स्थित रज्जू भैया संस्थान के अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेज विभाग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यशाला में शनिवार को प्रथम सत्र में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डा. प्रकाश कुमार सिंह ने भूस्खलन त्रासदी एवं उससे संबंधित विभिन्न घटनाओं के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत एवं पड़ोसी देशों में हिमालयी परिक्षेत्र में भूस्खलन की घटनाएं प्रायः होती रहती हैं जिसका प्रमुख कारण पहाड़ों को काटकर बनने वाले रास्ते हैं। उन्होंने जोशी मठ में जमीन दरकने एवं सिल्कयारा - बारकोट सुरंग के धंसने की घटनाओं एवं उसके कारणों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि नार्वे देश में पहाड़ी इलाकों में ओपन रोड से ज्यादा सुरंग के माध्यम से आवागमन को वरीयता दी जाती है जिससे वहां पर भूस्खलन आदि की घटनाएं भारत एवं पड़ोसी देशों की अपेक्षा बहुत ही कम है। उन्होंने का कि आज के समय में रिमोट सेंसिंग तकनीकी की मदद से भूस्खलन एवं अन्य आपदाओं के परिपेक्ष्य में अर्ली वार्निंग सिस्टम डेवेलप करने में मदद मिल रही है जिस वजह से जनहानि एवं बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि हिमालय जैसे दुर्गम पहाड़ियों में जहां पर प्रत्यक्ष रूप से फील्ड करना संभव नहीं है वहां रिमोट सेंसिंग तकनीकी की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है। एक अन्य सत्र में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आये अन्य विशेषज्ञ डा. आर पी सिंह ने जीपीएस नेविगेशन सिस्टम एवं उसके विभिन्न वैज्ञानिक आयामों पर विस्तार से चर्चा की । उन्होंने बताया कि जीपीएस सिस्टम ब्रह्मांड में होने वाली विभिन्न घटनाओं एवं उनकी वास्तविक स्थितियों - परिस्थितियों को जानने का थर्मामीटर है। आज के समय में नेविगेशन प्रणाली को बेहतर बनाने में एडवांस जीपीएस सिस्टम एवं रिमोट सेंसिंग तकनीकी का बड़ा योगदान है जिसका उपयोग भारत सहित विभिन्न देशों की सेनाओं एवं खुफिया एजेंसियों द्वारा बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। रज्जू भइया संस्थान के निदेशक प्रोफेसर प्रमोद यादव ने बाह्य विशेषज्ञों का अंगवस्त्रम तथा स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। तकनीकी सत्रों का संचालन कार्यशाला के संयोजक डा. श्याम कन्हैया ने किया। इस अवसर पर अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेज के विभागाध्यक्ष डॉ नीरज अवस्थी, डा. शशिकांत यादव, डा. सौरभ सिंह, डा. नितेश कोन्टे, डा. पुनीत धवन, डा. धीरेन्द्र चौधरी एवं सभी प्रतिभागियों सहित विभाग के विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।