Thursday 20 October 2011

एक दीपक विश्वविद्यालय के नाम भी.....

आज संगोष्ठी भवन में सम्मानित अध्यापक बंधुओं ,सम्मानित अधिकारीगण और सम्मानित कर्मचारी बंधुओ को आम सभा के जरिये संबोधित  करते हुए आदरणीय कुलपति जी नें सभी के प्रति शुभ दीपावली की मंगल कामना के साथ कहा कि  इस महान पर्व पर असंख्य दीपों के साथ आप सभी एक दीपक विश्वविद्यालय के नाम भी जलाएं जो कि हमारी ईमानदारी,अनुशासन प्रियता  और विश्वविद्यालय के प्रति समर्पण-निष्ठा का प्रतीक हो तथा यह प्रकाश पूरे समाज में फ़ैल कर विश्वविद्यालय के प्रति लोंगों में सकारात्मक सन्देश दे. उन्होंने कहा कि समाज में हम आज तभी आदरणीय बन सकते हैं जब हम सभी में अनुशासन ,समर्पण और लगनशीलता होगी.आम सभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि 24 वर्षो के अपने कार्यकाल में विश्वविद्यालय नें   प्रदेश ही नहीं देश में अपनी ख्याति अर्जित किया है। विवि का यह नाम सभी के सहयोग, कर्मठता के बल पर ही मिला है।  अगले वर्ष विवि अपनी रजत जयंती मनायेगा, जिसमें सभी की सहभागिता एवं सुझाव अनिवार्य है।आज आप सभी के सहयोग से हमने विश्वविद्यालय में कई एक नई पहल की है जिसके सकारात्मक परिणाम भी देखनें को मिल रहे हैं.उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को जबाबदेह बनाने और और त्वरित कार्य संपादन हेतु लम्बे समय से एक सीट पर जमे कर्मचारी बंधुओं को एक-दूसरे की जगह स्थानांतरित किया है,परीक्षा प्रणाली को जबाबदेह और पारदर्शी बनाया है ,परीक्षा   की गोपनीयता  भंग  करने वालों  को दण्डित  किया गया.परीक्षा प्रश्नपत्र का नया पैटर्न लागू किया गया ,बी- कापी पद्धति को खत्म कर दिया गया,कई  मदों में कटौती ,समय -समय पर अर्थदंड से प्राप्त धनराशि  और वित्तीय अनुशासन के साथ मितब्ययता कर विश्वविद्यालय नें इस वर्ष अब तक करीब एक करोड़ रूपये बचाए है  .यह सब आप सब की उपलब्धियां है .उन्होंने कहा कि नई सूचना तकनीक को अपना कर हम जहाँ   अपना कार्य त्वरित निपटा  सकते हैं वहीं  हम नई पीढी  से जुड़  भी सकते है. आज कम्यूटर  से दूरी  का मतलब  है हम अपनें  बच्चों  से ही  दूरी बना  रहे हैं.उन्होंने सभी से आह्वान किया कि हम सभी को जन सेवा-समाज सेवा के लिए सतत तैयार रहना चाहिए ताकि इस विश्वविद्यालय का नाम समाज में -लोंगों की जुबान पर सम्मान के साथ लिया जाय.
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के पूर्व कार्यवाहक कुलपति प्रोफ़ेसर डी.डी .दुबे नें कहा कि हमें आज प्रगति के लिए सकारात्मक सोच अपनाने की जरूरत है .उन्होंने इस आम सभा के जरिये संवाद स्थापित करने के लिए कुलपति जी की की भूरि-भूरि प्रशंसा की .
कुलसचिव डॉ बी .एल .आर्य नें सभी कर्मचारी बंधुओं से  आग्रह किया कि समय के साथ चलनें के लिए हम सभी को  सूचना प्रौद्योगिकी से युक्त होना होगा.कम्यूटर-इंटरनेट की उपयोगिता को समझाते हुए आपनें कहा कि हमें इस तकनीक को अपना मित्र बनाना होगा जिससे हम विश्वविद्यालय को प्रगति पथ त्वरित गति से ले जा संकें.
इस आम सभा का सञ्चालन कुलपती जी के निजी सचिव डॉ के .एस .तोमर द्वारा किया गया.इस अवसर पर विश्वविद्यालय के समस्त  सम्मानित अध्यापक बंधु ,सम्मानित अधिकारीगण और सम्मानित कर्मचारी बंधु उपस्थित थे.       


Sunday 2 October 2011

रंगारंग के बीच रजत जयंती समारोह का आगाज़


पूर्वांचल विश्वविद्यालय का रजत जयंती समारोह आज  से रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ शुरू हो गया । आज उद्घाटन सत्र  की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. सुंदरलाल जी  ने कहा कि आज का दिन शिक्षक, कर्मचारी और छात्रों के लिए बड़े गौरव का है। एक वर्ष तक किसी न किसी रूप में हम  रजत जयंती समारोह मनाते रहेंगे। विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित कार्यक्रम से छात्रों को काफी कुछ सीखने का का मौका मिलेगा। इस दौरान विविध कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। बापू बाजार के माध्यम से सभी को समानता की ओर  ले जाने का प्रयास चल रहा है। जब तक शिक्षण संस्थान समाज से नजदीकी रूप से नहीं जुड़ेंगे तब तक उद्देश्य अधूरा रहेगा। हमने बापू बाजार के जरिए विश्वविद्यालय को सीधे समाज से जोड़ने का प्रयास किया है। गुणवत्ता युक्त शिक्षा के जरिए विश्वविद्यालय को नई ऊंचाई दी जायेगी । 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व न्यायाधीश ए.बी. श्रीवास्तव ने कहा कि हम सभी को मिलकर ऐसा काम करना है जिससे विश्वविद्यालय निरंतर तरक्की करे। विश्वविद्यालय सिर्फ युवकों को डिग्री बांटने का काम न करें, बल्कि उन्हें अच्छे इंसान के रूप में तैयार करें। शिक्षण संस्थानों में शैक्षणिक उन्नयन की दिशा में गंभीर प्रयास होने चाहिए। विश्वविद्यालय की गरिमा बेहतर पठन पाठन से बढ़ेगी।

उत्तर-प्रदेश सरकार के  पूर्व मंत्री ओ.पी. श्रीवास्तव ने कहा कि विश्वविद्यालय आज शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुका है। इसकी साख को और चार चांद लगाने की जरूरत है।उन्होंने विश्वविद्यालयों को सरकार के नियंत्रण से मुक्त रखने की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि किसी के अधीन न रहने पर विश्वविद्यालयों में बेहतर तरीके से काम काज हो सकता है। 
चिंतक शिव स्वारथ सिंह ने कहा कि गांधी जी के विचारों की उपयोगिता आज और अधिक बढ़ गई है। उनके आंदोलन की झलक जय प्रकाश नारायण व अन्ना हजारे के संघर्ष में दिखी है।    
 कुलसचिव डा. बीएल आर्य  जी ने विश्वविद्यालय की प्रगति पर विस्तार से प्रकाश डाला।रजत जयंती समारोह में ही अंतरविश्वविद्यालयीय युवा महोत्सव के लिए छात्रों का चयन किया गया।चयनित छात्र महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी में 15 से शुरू हो रहे युवा महोत्सव में हिस्सा लेंगे। युवा महोत्सव के संयोजक  डा. अविनाश पार्थिडकर ने बताया कि युवा महोत्सव के लिए विश्वविद्यालय टीम का चयन किया गया है। सुगम संगीत के लिए सुबोध कुमार का चयन किया गया। समूह गान केलिए दीपक यादव व अन्य, डिवेट केलिए नितिन कुशवाहा, काव्य पाठ के लिए प्रतीक शुक्ल, फाइन आर्ट केलिए प्रतीक्षा सिंह, कोलाज के लिए जंग बहादुर शुक्ल, पोस्टर मेकिंग के लिए विनोद कुमार, रंगोली के लिए ऋचा पाल का चयन किया गया है ।रजत जयंती समारोह के मद्देनजर संगोष्ठी भवन को बड़े ही आकर्षक ढंग से सजाया गया था । समारोह के  पूर्व में  मुख्य अतिथि और अन्य सम्मानित अथितियों द्वारा  माँ  सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण किया गया. इस  अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षक गण, प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारीगण उपस्थित थे. संचालन डा.पंकज सिंह व आभार ज्ञापन डा.अविनाश पार्थिडकर ने किया।

  





Saturday 1 October 2011

वीर बहादुर सिंह पूर्वान्चल विश्वविद्यालय के बढ़ते कदम - - डॉ के .एस. तोमर


वक्त मनुष्य का खामोश पहरूआ है। वह न स्वयं रूकता है और न किसी को रोकता है। वह खबरदार करता है और दिखाई नहीं देता। वह चलता जा रहा है। सूर्य उदय होता है और ढल जाता है। केलेण्डर बदल जाता है और हम सभी का प्रत्येक पल इतिहास होता जा रहा है। हर साल नया वर्ष आता है और बीत जाता है। इस वर्ष भी नया वर्ष आया, हमने इस केलेण्डर की जगह नया केलेण्डर लगा दिया। विश्वविद्यालय के इतिहास में भी 24 केलेण्डर बदल गये। पूर्वान्चल विश्वविद्यालय की स्थापना 2 अक्टूबर, 1987 को हुई और देखते ही देखते 24 वर्ष बीत गये। विश्वविद्यालय 2 अक्टूबर, 2011 को रजत जयन्ती वर्ष में प्रवेश कर रहे है तथा अपने इस विश्वविद्यालय का 25वाॅं स्थापना दिवस भी मनाने जा रहे है।
विश्वविद्यालय के विगत 24 वर्ष के इतिहास मंे झांके तो हमंे सूक्ष्म रूप से ही सही जौनपुर के इतिहास की ओर भी देखना पड़ेगा। आदि गंगा पावन सलिला गोमती के सुरम्य तट पर बसा नगर, जौनपुर अपनी ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है। जौनपुर को ‘‘शिराजे-ए-हिन्द’’ बनने का भी सौभाग्य प्राप्त है आध्यात्म, शिक्षा एवं सांस्कृतिक दृष्टि से प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध नगर जौनपुर को छोटी काशी की उपमा दी जाती रही है क्योंकि काशी के बाद जौनपुर ही संस्कृत भाषा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। इसी गौरवशाली पृष्ठभूमि को बनाए रखने के लिए पूर्वान्चल के प्रबुद्ध वर्ग विशेषकर जौनपुर के नेतृत्व ने यहाॅं पर विश्वविद्यालय की स्थापना का बीड़ा उठाया। गौतम बुद्ध ने कहा ‘अपना प्रकाश दीप स्वंय बनो’। कुरआन कहता है ‘अंधकार से रोशनी की ओर चलो’। हजरत ईसा का कहना है ‘अपने आपका दीपक बनो’। वेदमंत्र है ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ यानि अधंकार से प्रकाश की ओर चलो। इन पावन वाक्यों में एक ही संदेश हुआ है ‘ज्ञान के माध्यम से मनुष्य का सर्वांगीण विकास’ इसी उद्देश्य को लेकर पूर्वान्चल विश्वविद्यालय की स्थापना का संकल्प पूरा हुआ। जौनपुर मंे विश्वविद्यालय की स्थापना निश्चित रूप से ‘‘शिराजे-ए-हिन्द’’ की धरती का सम्मान था।
इतिहास के पन्ने उलटे तो सामने आता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही पूर्वान्चल विश्वविद्यालय को गोरखपुर विश्वविद्यालय के कार्यक्षेत्र का एक बड़ा भाग स्थानान्तरित कर दिया गया। पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया, वाराणसी, मिर्जापुर, इलाहाबाद तथा सोनभद्र कुल 9 जनपदों के 68 स्नातक एवं स्नातकोत्तर महाविद्यालय इससे सम्बद्ध कर दिये गये। अतः अपने जन्म से ही यह विश्वविद्यालय कार्यक्षेत्र सम्बद्ध महाविद्यालयों तथा छात्रों की संख्या की दृष्टि से बड़ा विश्वविद्यालय था। अपना भवन न होने के कारण विश्वविद्यालय का कार्यलय प्रथमतः टी0डी0 कालेज, जौनपुर के फार्म हाऊस के पुराने भवन (पीली-कोठी) में प्रारम्भ हुआ। उस समय न तो बैठने के लिए कुर्सी थी और न ही कार्य करने के लिए मेज थी। टी0डी0कालेज से कुछ कुर्सी मेज उधार लेकर कार्य प्रारम्भ हुआ। कार्य को गति देने तथा विश्वविद्यालय को स्वरूप प्रदान करने के लिए स्टाफ, भूमि और भवन नहीं थे। उत्तर प्रदेश शासन ने विश्वविद्यालय हेतु भूमि अधिग्रहित करने के लिए कुल 85 लाख की धनराशि भी स्वीकृत की तथा कुछ पद भी स्वीकृत किये। शासन द्वारा सृजित पदों पर नियुक्तियाॅं हुई, तत्पश्चात विश्वविद्यालय की विकास यात्रा प्रारम्भ हुई। जिला प्रशासन ने जौनपुर शहर से लगभग 12 कि0मी0 दूर जौनपुर शाहगंज मार्ग पर देवकली जासोपुर ग्राम सभाओं की कुल 171.5 एकड़ भूमि अधिग्रहीत कर विश्वविद्यालय को उपलब्ध करायी।
इसी बीच विश्वविद्यालय ने अपने प्रशासनिक एवं शैक्षिक कार्यो को गति प्रदान करने तथा अपना कार्य समुचित एवं नियमानुसार निपटाने हेतु, अपनी कार्यपरिषद, विद्वत परिषद, परीक्षा समिति, प्रवेश समिति, क्रीड़ा परिषद, वित्त समिति आदि समितियों का गठन किया और अपनी प्रथम परिनियमावली का निर्माण कर शासन के अनुमोदनार्थ भेजा। इसी के साथ ही विश्वविद्यालय ने अपना अध्यादेश भी निर्मित किया।
24 वर्ष पूर्व स्थापित पूर्वान्चल विश्वविद्यालय आज वयस्क रूप में समाज के सामने प्रतिस्थापित हो चुका है। सौभाग्य से विश्वविद्यालय को कर्मठ एवं दूरदर्शी कुलपतियों का नेतृत्व प्राप्त होता रहा है। प्रथम कुलपति श्री हरिमूर्ति सिंह जी ने विश्वविद्यालय की कार्यशैली की आधार शिला रखी तो स्व0 डा0 आर0 एन0 गुप्ता जी ने प्रशासनिक ढाॅंचे का रूप दिया। सभी ने इसके विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रो0 यू0 पी0 सिंह के कार्यकाल में विश्वविद्यालय के अपने स्वयं के घर का सपना साकार हुआ। स्व0 प्रो0 शरत कुमार सिंह जी ने विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग पठन-पाठन शुरू कराया वहीं परिसर पाठ्यक्रम की शुरूआत का श्रेय डा0 पातंजलि जी को जाता है तो भवनों की श्रंृखला प्रारम्भ कराने का श्रेय प्रो0 नरेश चन्द्र गौतम जी की है। प्रो0 के0 पी0 सिंह जी ने प्रशासनिक दृढ़ता का परिचय दिया तो डा0 सारस्वत जी ने इस प्रवृत्ति को स्थिरता प्रदान की। वर्तमान कुलपति भी इन यशस्वी कुलपतियों की परम्परा में अपना योगदान देने हेतु प्रयासरत् है। आज विश्वविद्यालय परिसर में स्नातक स्तर पर इंजीनियरिंग की छः शाखाओं में शिक्षा दी जा रही है। साथ ही बी0फार्मा, एम0बी0ए0, एम0सी0ए0, एम0बी0ई0, एम0एफ0सी0, एम0एच0आर0डी0, मास कम्युनिकेशन एण्ड जर्नलिज्म, एप्लाइड साइकोलाजी, एम0एस-सी0 बायोटेक्नोलाजी, इन्वायरमेन्टल साइंस, अप्लाइड माइक्रोबायोलाजी, अप्लाइड बायोकेमेस्ट्री, एग्री बिजनेस तथा ई0कामर्स जैसे अनेक व्यवसायिक स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय परिसर में संचालित हो रहे है। इन विभागों में लगभग 2500 छात्र-छात्रायें शिक्षा ग्रहण कर रहे है और लगभग सभी शिक्षार्थियों के लिए छात्रावास की सुविधा उपलब्ध है। विश्वविद्यालय परिसर में प्रशासनिक भवन, छात्र सुविधा केन्द्र, संगोष्ठी भवन, शिक्षक अतिथि गृह, एन0 एस0 एस0 भवन, केन्द्रीय पुस्तकालय, संकाय भवन, आई0बी0एम0 भवन, चरक भवन, उमानाथ सिंह प्रौद्योगिक संस्थान, केन्द्रीय मूल्यांकन, अतिथि गृह, ट्रांजिट हास्टल, विश्वकर्मा छात्रावास, यू0जी0 छात्रावास, पी0जी0छात्रावास, एवं महिला छात्रावास भवन पूर्ण रूप से निर्मित हो चुके है तथा आवासीय परिसर में भी लगभग 250 फ्लैटस निर्मित हो चुके हैं जिसमें अधिकारी, शिक्षक एवं कर्मचारी रह रहे है। विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर चुके छात्र-छात्रायें अनेक जगहों पर शीर्षस्थ स्थानों पर पहुॅंचे हैं। क्रीडा के क्षेत्र में यहाॅं के छात्रों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदको सहित अनेकों पदक प्राप्त किये है। वहीं अनेकों छात्र राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न सेवाओं में स्थापित होकर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालय के गौरव को बढ़ा रहे है।
विश्वविद्यालय का उद्देश्य अपने छात्रों को सक्षम एवं सच्ची उच्च शिक्षा के माध्यम से उसका चहुमुखी विकास करना होता है। इस सक्षम, सच्ची उच्च शिक्षा से ही देश की युवा पीढ़ी को ज्ञानवान एवं संस्कारित बनाया जा सकता है समाज की सम्पूर्ण आशाओं, आकांक्षों का केन्द्र वहाॅं की युवा शक्ति ही होती है। यदि यह शक्ति किन्ही कारणोवश दिग्भ्रमित होकर पथभ्रष्ट हो जाये तो वह समाज एवं राष्ट्र पतोन्मुख हो जायेगा। समाज एवं राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है कि इस शक्ति का समुचित रूप से उपयोग किया जाय और उसे रचनात्मक कार्यों में लगाया जाय। छात्र ही युवाशक्ति के प्रतीक है। विशेषकर उच्च शिक्षा से सम्बद्ध छात्रों को दिशा देना नितांत आवश्यक है क्योंकि विद्यार्थी ही राष्ट्र का भावी नेता और शासक है। देश की उन्नति और भावी विकास का सम्पूर्ण दायित्व उसके सबध कंधों पर आने वाला है। सचमुच में राष्ट्र की उन्नति एवं प्रगति के लिए वह मुख्य धुरी का काम कर सकता है। जिस देश का विद्यार्थी सतत् जागरूक, सतर्क और सावधान होता है वह देश प्रगति की दौड़ में पीछे नहीं रह सकता। विद्यार्थी के जीवन में सत्य की सुगन्ध, तारूण्य का त्याग और उत्सर्ग के उमंग होनी चाहिए। ऐसे ही विद्यार्थी देश के गौरव, राष्ट्र की आकांक्षा और उन्नति का आधार बन सकते है। सतत् परिश्रमी, स्वस्थ, सबल, स्वावलम्बी और महत्वाकांक्षी विद्यार्थी ही राष्ट्र की शक्ति और अतुल सम्पत्ति है। राष्ट्र निर्माण और उसके प्रति सच्ची समपर्ण भावना रखने वाला विद्यार्थी ही सच्चा देशभक्त और सेवक हो सकता है। राष्ट्र निर्माण के लिए आज मैं छात्रों का, राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों के माध्यम से आह्वान करता हूॅॅं।
रखते हो तो दिखाओ कुछ आभा, उगते तारे।
आओ तेज, साहस के दुलर्भ दिन हैं यही हमारे।।
एक-एक, सौ-सौ अन्यायी कंसों को ललकारो।
अपनी पुण्य भूमि पर धन-जीवन सब वारो।।
आज जाति और धर्म हमारी राजनीति की झुठलाती गयी सच्चाई बन गये हैं जो वर्तमान सन्दर्भ में परिभाषित होकर नये सिरे से मान्यता की माॅंग कर रहे है। आज नितान्त जरूरत हैं राष्ट्रीय चरित्र निर्माण और नैतिक उत्थान की। नैतिक और मानवीय मूल्यों की प्रतिस्थापना की और यह बीड़ा युवा शक्ति को उठाना होगा। यदि आज का युवा दिग्भ्रमित होगा तो देश मानवीय और नैतिक अवमूल्यन की ओर जायेगा। आज प्रतिशत में देखा जाय तो युवा पीढ़ी दिशाहीन है। छात्र दिशाहीन हैं वे उन फाइलों के फीते हैं जिनके कागज शुरू से गायब है। अब जरूरत है सुधार इकाई से शुरू हो। हमारे सामने सबसे छोटी इकाई है व्यक्ति और वृहत्तर इकाई है विश्व। दोनों का गहरा अन्तर सम्बन्ध है। जुड़े हुए है। व्यक्ति से भिन्न विश्व नहीं और विश्व से भिन्न व्यक्ति नहीं। जरूरत है व्यक्ति के सुधरने की। सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से तो राष्ट्र स्वयं सुधरेगा और तभी देश में राष्ट्रीय मूल्य स्थापित हो सकेंगे राष्ट्र सक्षम होगा।
संसार को प्रकाशित करने के लिए हमको जलना होगा हमको तपना होगा। तभी हम सफल होंगे। सफल युवा कोई महान काम न भी करे तो कोई बात नहीं परन्तु उन्हें छोटे कामों को भी महान ढंग से करना सीखना होगा। इंतजार करने वालों को चीजे मिलती तो है, लेकिन सिर्फ वही मिलती है, जो संघर्ष करने वाले छोड़ देते हैं। सफलता किस्मत का नहीं बल्कि उसूलों और कृत्यों का नाम है। सफलता का मतलब सिर्फ असफल होना नहीं है बल्कि सफलता का सही अर्थ है अपने मकसद को पाना। इसका मतलब है पूरा जीवन सफल बनाना न कि जीवन के किसी एक पक्ष को सफल बनाना। पूर्वान्चल विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों, इससे जुड़े समस्त जनमानस के चहुमुखी विकास के लिए दृढ़ता से आगे बढ़ रहा है।
आइये वो धूप के छप्पर हों या छांव की दीवारें
अब जो भी उठायेंगे मिल जुल के उठायेंगे
जब साथ न दे कोई आवाज हमंे देना हम फूल सही,
लेकिन पत्थर भी उठायेंगे।
इसी अवधारणा के वशीभूत होकर विश्वविद्यालय में विकास हेतु अनेकों कदम उठाये है- वर्ष 2011 की परीक्षा में शत-प्रतिशत (उत्तर पुस्तिकाओं) कोडिंग कराकर मूल्यांकन कराया गया। विश्वविद्यालय के इतिहास में यह पहली बार हुआ है सम्भवतः प्रदेश में भी पहली बार। समय पर परीक्षा फार्म जमा न कराने पर इस वर्ष 88 महाविद्यालयों के 34,921 छात्रों को मुख्य परीक्षा से वंचित किया गया। माननीय न्यायालय के आदेश पर ही पुनः परीक्षा करायी गयी। परीक्षाफार्म, समय से जमा न करने वाले महाविद्यालयों/प्रबन्धकों पर अर्थदण्ड लगाया गया। विलम्ब शुल्क एवं अर्थ दण्ड के रूप में अनुशासनहीनता के लिए महाविद्यालयों से रूपया 52,69,400/- (रूपया बावन लाख उन्नहतर हजार चार सौ)  वसूला गया। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार (10 मार्च से 14 मई 2011) परीक्षा आयोजित की गयी तथा समय से मूल्यांकन कार्य सम्पन्न हुआ (05जून, 2011)। मूल्यांकन पश्चात् अंकपर्ण तैयार करने की नवीन व्यवस्था लागू की गई और समय से परीक्षा परिणाम घोषित कर दिये गये है। 93,541 छात्रों की पर्यावरण/राष्ट्र गौरव की परीक्षा वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के माध्यम से कराई गयी जिससे विश्वविद्यालय को लगभग 10 लाख रूपयों की बचत हुई। लगातार तीन वर्षो से मूल्यांकन में लगे कर्मियों को इस वर्ष मूल्यांकन कार्य से हटाया गया। शिक्षकों द्वारा असावधानी पूर्वक किये गये मूल्यांकन के कारण माननीय न्यायालयों द्वारा विश्वविद्यालय पर लगाये अर्थदण्ड को संबंधित शिक्षकों से वसूला गया। असावधानी पूर्वक किये मूल्यांकन के आरोपित (06) शिक्षकों का परीक्षत्व निरस्त किया गया तथा उन्हंे आगामी परीक्षा कार्यो से विरत किया गया।
शोध मूल्यांकन में पारदर्शिता हेतु शोधपत्र की बाध्यता एवं शोध प्रबन्ध मौखिकी परीक्षा की वीडियोग्राफी जैसे कदम उठाये गये है तथा शोध ग्रन्थों को इन्फिलिब नेट पर उपलब्ध कराने एवं शोध ग्रंथो की नकल रोकने हेतु यू0जी0सी0 के शोध गंगा प्रोजेक्ट के साथ साझेदारी की जा रही है। विश्वविद्यालय में सभी विषयों (इंजीनियरिंग/ एग्रीकल्चर/उर्दू को छोड़कर) में सत्र 2011-12 से समान पाठ्यक्रम लागू कर दिया गया है। प्रत्येक विषय की तीन सर्वाधिक अंकों वाली उत्तर पुस्तिकाओं का सार्वजनिक अवलोकनार्थ विश्वविद्यालय के केन्द्रीय पुस्तकालय में उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि और छात्र भी इससे प्रेरित हो सकें। कक्षा संचालन की अनुमति देने के पूर्व सम्बद्ध महाविद्यालयों के शिक्षकों एवं महाविद्यालय के अभिलेखों का विश्वविद्यालय बुलाकर भौतिक सत्यापन कराया जा रहा है। 8फरवरी 2011 को चतुर्दश दीक्षान्त समारोह का आयोजन किया गया। 21 जनवरी, 2012 को पन्द्रहवाॅं दीक्षान्त समारोह का आयोजन किया जायेगा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में मिले 10.50 करोड़ रूपये में से गत चार वर्षो में खर्च 1.80 करोड़ का प्रयुक्तिकरण किया गया तथा अतिरिक्त दो करोड़ रूपयों हेतु योजना एवं उसका व्यय किया गया। परिनियमावली में वर्णित छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष एवं चार सहायक संकायाध्यक्षों की नियुक्ति की गयी। परिसर परीक्षाओं के शीघ्र परिणाम हेतु टेक्निकल सेल का गठन किया गया। दो शिक्षकों को विदेश एवं 06 शिक्षकों को देश में कान्फ्रेन्स मंे भाग लेने हेतु आर्थिक/शैक्षणिक सुविधा प्रदान की गयी। दो शिक्षकांे को अनुसंधान हेतु सवेतन अवकाश प्रदान किया गया। विज्ञान दिवस के अवसर पर दो दिन (28.02.2011, 01.03.2011) के विविध कार्यक्रम आयोजित किये गये। एथिकल हैंकिग विषय पर इंजिनियरिंग संस्थान मंे 9 एवं 10 अपै्रल को दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गयी। इंजीनियर्स डे पर दो दिवसीय आयोजन दिनांक 14 एवं 15 सितम्बर, 2011 को सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। विभिन्न विषयों में 20 से अधिक विद्वानों को निमन्त्रित कर उनका व्याख्यान विश्वविद्यालय में कराया गया। बायो टेक्नोलाजी विभाग द्वारा सैंटर फार एक्सैलेंस (राज्य सरकार) एस0ए0पी0 (यू0जी0सी0) तथा एफ0आई0एस0टी0 (डी0एस0टी0) हेतु योजनायें प्रस्तुत की गयी। सभी शैक्षणिक एवं प्रशासनिक विभागों में इण्टरनेट की सुविधा उपलब्ध कराई गयी। इस वर्ष प्रश्न पत्र प्रिटिंग पर लगभग 20 लाख रूपये की बचत की गयी। कोडिंग पर लगभग 10 लाख रूपये की बचत की गयी। वस्तुनिष्ठ परीक्षा कराकर लगभग 10 लाख रूपये की बचत की गयी। सामान्य प्रिंटिग पर लगभग 05 लाख रूपये की बचत की गयी। चार वर्ष से अधिक एक ही विभाग में कार्यरत् 215 कर्मियों का विभाग परिवर्तन किया गया। अवकाश एवं परीक्षा अवधि मंे कटौती कर शिक्षण दिवसों की संख्या में वृद्धि की गयी। छात्र कल्याण विभाग के अन्तर्गत अनुसूचित जाति/जनजाति/अल्पसंख्यक सैल की स्थापना की गयी। विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों को समाज से जोड़ने एवं छात्रों में नेतृत्व गुण विकसित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय सेवा योजना के अन्तर्गत मासिक ‘बापू बाजार’ की श्रृखंला शुरू की गयी। इस श्रृखंला में अब तक 5 बापू बाजारों का आयोजन (दिनांक 30 जनवरी 2011 जासोपुर, जौनपुर, 27 फरवरी 2011 को दुल्लहपुर, गाजीपुर, 31 जुलाई 2011 को मुहम्मदाबाद गोहना, मऊ, दिनांक 28 अगस्त 2011 को बैजावारी, आजमगढ़ तथा 25 सितम्बर 2011 को खुटहन, जौनपुर) सम्पन्न किया जा चुका है। यह श्रृखंला आगे भी (परीक्षाकाल, ग्रीष्मावकाश छोड़कर) अनवरत जारी रहेगी। 22फरवरी - 25 फरवरी, 2011 में रोवर्स रेंजर्स रैली का आयोजन, छूटी हुई परीक्षायें एक दिन में दो पालियों के बजाय तीन पालियों में सम्पादित कराना तथा भविष्य में समस्त परीक्षाएॅं तीन पालीयों में कराने का निर्णय लिया गया। स्नातक स्तर पर लगभग 10 रोजगार परक नये पाठ्यक्रमों को तैयार करने की प्रक्रिया विभिन्न चरणों में, आगामी सत्र से लागू करने की योजना, परीक्षा/मूल्यांकन में पारदर्शिता लाने हेतु कदम, समस्त फार्मो का आन लाइन करना, कम्प्यूटराइज्ड डाटा वेस का निर्माण, नैक द्वारा अवलोकन हेतु प्रयास, यू0जी0सी0 टीम द्वारा अवलोकन कराना, रजत जयन्ती वर्ष के विशेष शैक्षणिक/सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन, विश्वविद्यालय कर्मियों हेतु इनसर्विस कम्प्यूटर टेªनिंग कार्यक्रम चला कर प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार लाना, कम्युनिटि रेडियो की स्थापना का प्रस्ताव, हमारी प्राथमिकतायें है। यू0जी0सी0 में भेजे जाने हेतु तैयार प्रस्ताव- गांधी अध्ययन केन्द्र, महिला विकास केन्द्र, अनुसूचित जाति/जनजाति तथा अल्पसंख्यक छात्रांे हेतु कोचिंग सैंटर। कैरियर काउन्सलिंग एवं प्लेसमंेट सैल। सत्र 2011-2012 हेतु भारतीय विश्वविद्यालय संघ द्वारा प्रदत्त विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन - पूर्वी क्षेत्र अन्तर्विश्वविद्यालयीय क्रिकेट महिला प्रतियोगिता। पूर्वी क्षेत्र अन्तर्विश्वविद्यालयीय बास्केटबाल महिला प्रतियोगिता। पूर्वी क्षेत्र अन्तर्विश्वविद्यालयीय हाकी महिला प्रतियोगिता। अखिल भारतीय अन्तर्विश्वविद्यालयीय ;(
All India Inter University) हाकी महिला प्रतियोगिता आदि आयोजनों के लिए विश्वविद्यालय तैयार है।
हम सभी ने अपने संस्थापकों के सपनों से प्रेरणा ली है, जनपद की आकाॅंक्षाओं से ऊर्जा प्राप्त की है तथा युवाओं को सुनहरे भविष्य में झांकने की भावना ने दृढ़ता प्रदान की है। हमें विश्वास है जले हुए दिये की कालिख गवाह होगी कि पुनः युग बदलेगा, शिक्षा बदलेगी और भारत फिर विश्व का ज्ञानगुरू कहलायेगा - तथा भारत के ज्ञान और यहाॅं की संस्कृति को सारा विश्व अपनायेगा।
आॅंच दे संवेदनाओं को पिघलने के लिए,
बदचलन होती हवा का रूख बदलने के लिए।
हमने एक शम्मा जलाई है बड़े विश्वास से,
इन अंधेरों के इरादों को कुचलने के लिए।।

विश्वविद्यालय की स्थापना का विवरण प्रस्तुत है -
पूर्व मुख्यमंत्री स्व0 श्री वीर बहादुर सिंह के मन में, अपने पूर्वजांे की कर्मभूमि की भावुकता तथा जौनपुर के बुद्धिजीवियों के लगातार तकाजों के चलते यह अवधारणा निश्चय ही मजबूत हुयी होगी कि विश्वविद्यालय जौनपुर मंे ही बने। अतः जौनपुर को विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए चुन लिया गया। निश्चय ही यह इस जनपद के लिए सुखद और शिराज-ए-हिन्द की धरती का सम्मान था। प्रकाशित नोटिफिकेशन इस प्रकार है -

क्रम संख्या - 1387
(रजिस्टर्ड नं0 ए0 डी0 - 4
लाइसेन्स सं0 डब्ल्यू0 पी0-4)
(लाइसेन्स टू पोस्ट विदाउट प्रीपेमेन्ट)


सरकारी गजट, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेशीय सरकार द्वारा प्रकाशित
असाधारण
लखनऊ, सोमवार, 28 सितम्बर, 1987
आश्विन 6, 1909 शक सम्वत्
उत्तर प्रदेश सरकार
शिक्षा अनुभाग - 10
संख्या 5005, 15 10-87-15 (15) - 86 टी0सी0
लखनऊ, 28 सितम्बर, 1987
अधिसूचना
उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय (पुनः अधिनियम तथा संशोधन) अधिनियम, 1974 (उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 29 सन् 1974) द्वारा यथा पुन अधिनियमित और संशोधित, उत्तर राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1973 (राष्ट्रपति अधिनियम संख्या 10 सन् 1973) की जिसे आगे उक्त अधिनियम कहा गया है धारा 1 की उप-धारा (1-क) के अधीन शक्ति का प्रयोग करके राज्यपाल दिनांक 2 अक्टूबर, 1987 को ऐसा दिनांक नियत करते हैं जब से उक्त अधिनियम की अनुसूची में विनिर्दिष्ट सम्बद्ध क्षेत्रों के लिए जौनपुर में पूर्वान्चल विश्वविद्यालय के नाम से एक विश्वविद्यालय की स्थापना की जायेगी।
2- उक्त अधिनियम की धारा 4 की उपधारा (6) के अधीन शक्तियों और इस निमित्त अन्य समस्त समर्थकारी शक्तियों का प्रयोग करके राज्यपाल यह भी निर्देश देते हैं कि उक्त विश्वविद्यालय की अधिकारिता के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्रों में स्थित किसी भी महाविद्यालय के प्रत्येक छात्र को, जो इस विश्वविद्यालय की स्थापना के ठीक पूर्व गोरखपुर विश्वविद्यालय की उपाधि के लिए अध्ययन कर रहा था या उसके लिए परीक्षा में बैठने के लिए पात्र था, उक्त उपाधि के लिए अपना पाठ्यक्रम पूरा करने की अनुज्ञा दी जायेगी और ऐसे छात्र के शिक्षण और उसकी परीक्षा के लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा आवश्यक प्रबन्ध किया जायेगा जो ऐसी परीक्षा का फल घोषित करेगा और तदुपरान्त पूर्वांचल विश्वविद्यालय ऐसी घोषणा के आधार पर अपनी उपाधि प्रदान करने के लिए सक्षम होगा।
    आज्ञा से
जगदीश चन्द्र पन्त
    प्रमुख सचिव