शिक्षा के साथ परंपरा और संस्कारों को भी सीखें विद्यार्थीः कुलपति
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में बुधवार को दीक्षांत व्याख्यानमाला के क्रम में पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के तत्वावधान में व्याख्यानमाला के तहत पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सपनों का भारत विषय पर संगोष्ठी हुई। इस अवसर पर कानून व्वयस्था में सुधार के लिए जनहित याचिका दाखिल कर चर्चा मं आने वाले सुप्रीम कोर्ट के प्रतिष्ठित अधिवक्ता अश्वनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि दीनदयाल जी एक भारत - श्रेष्ठ भारत चाहते थे।
संविधान की प्रस्तावना का भी यही उद्देश्य था। उनका मानना है कि शासक भी अच्छा हो कानून व्यवस्था भी अच्छी हो और शिक्षा भी अच्छी हो तभी श्रेष्ठ भारत का निर्माण हो सकता है। समान अवसर तब मिलेगा जब एक नेशन एक एजुकेशन देश में होगी। उन्होंने कहा कि युवाओं को सोशल मीडिया का प्रयोग राष्ट्रहित और राषट्र निर्माण के लिए करना चाहिए। उन्होंने समस्याएं को खत्म करने के लिए देश मे कड़े नियम-कानून की वकालत की। उन्होंने सऊदी अरब का उदाहरण देते हुए कहा कि 1975 से पहले वह रेगिस्तान था, लेकिन सख्त कानून-व्यवस्था के वजह से आज वह आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि देश को सांस्कृतिक रूप से आजाद होना पड़ेगा तभी यह श्रेष्ठ भारत बन पायेगा।
संगोष्ठी में कुलपति प्रोफेसर निर्मला एस मौर्य ने कहा कि विश्वविद्यालय में विद्यार्थी शिक्षा के साथ परंपरा और संस्कारों में भी जीना सीखते है। विद्यार्थियों को जीवन में सकारात्मक सोच रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्तमान के धरातल पर अतीत के सहारे भविष्य की जो सोच रखता है वही जननायक होता है। पंडित जी का दर्शन एकात्म मानववाद का था। कुलपति का मानना है कि भाषाएं अलग हो सकती हैं किंतु व्यक्ति और दिल अलग नहीं हो सकते।
कार्यक्रम संचालन डॉ अनुराग मिश्र और विषय प्रवर्तन डॉ राहुल राय ने किया। इसके पूर्व कुलपति एवं मनोज मिश्र द्वारा संपादित पुस्तक मुख्य अतिथि को भेंट की गई। मुख्य वक्ता का परिचय डॉक्टर अंकित कुमार ने दिया। धन्यवाद ज्ञापन जनसंचार विभागाध्य्क्ष डा. मनोज मिश्र ने किया। इस अवसर पर प्रो. अजय द्विवेदी, डॉ अविनाश पाथर्डीकर, प्रो. बीडी शर्मा, प्रो. मिथिलेश सिंह, डॉ. मंगला यादव, डॉ अंकित सिंह, डॉ रामजीत सोनकर, डॉ. वनिता सिंह, डॉ. प्रियंका कुमारी, डॉ. सुनील कुमार, डॉ प्रमोद यादवा , डॉ मनोज, डॉ रसिकेश, डॉ इन्द्रेश कुमार आदि मौजूद रहे।
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