कार्यशाला के पंचम दिवस पर मॉलिक्युलर डॉकिंग पर हुआ व्याख्यान और प्रशिक्षण
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय परिसर स्थित प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) भौतिकीय विज्ञान अध्ययन एवं शोध संस्थान के रसायन विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री एंड मॉलिक्यूलर डिजाइन विषय पर सात दिवसीय कार्यशाला के पांचवें दिन आण्विक डॉकिंग पर व्याख्यान और प्रशिक्षण हुआ।इस अवसर पर वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो वंदना सिंह ने प्रतिभागियों को कंप्यूटेशनल केमेस्ट्री के विभिन्न उपयोगों से परिचित कराया। प्रो सिंह ने कहा कि विभिन्न विभिन्न अभिक्रियाओं को प्रयोगशाला में करने से पहले हम कंप्यूटर के माध्यम से विभिन्न तरीकों से उनके बारे में अध्ययन कर सटीक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। प्रोफेसर सिंह ने कहा कि कंप्यूटेशनल केमेस्ट्री की मदद से हम दवाओं का तथा विभिन्न पदार्थों के गुणों को जान सकते हैं।कार्यशाला के प्रथम सत्र में रसायन विभाग, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया डॉ. सुमित कुमार ने प्रतिभागियों को मॉलेक्युलर डॉकिंग तथा उसके प्रयोग के बारे में बताया। डॉ सुमित ने ऑटोडॉक की मदद से प्रोटीन और दवाओं के बीच डॉकिंग करके दिखाया और सिखाया।डॉ. सुमित ने कहा कि प्रोटीन, पेप्टाइड्स, न्यूक्लिक एसिड, कार्बोहाइड्रेट और लिपिड जैसे जैविक रूप से प्रासंगिक अणुओं के बीच संबंध सिग्नल ट्रांसडक्शन में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, दो इंटरैक्टिंग साझेदारों का सापेक्ष अभिविन्यास उत्पादित सिग्नल के प्रकार को प्रभावित कर सकता है इसलिए, डॉकिंग उत्पादित सिग्नल की शक्ति और प्रकार दोनों की भविष्यवाणी करने के लिए उपयोगी है। डॉ सुमित ने कहा कि आणविक डॉकिंग संरचना-आधारित दवा डिजाइन में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली विधियों में से एक है, इसकी वजह उपयुक्त लक्ष्य बाइंडिंग साइट पर छोटे अणु लिगेंड के बंधन-संरचना की भविष्यवाणी करने की क्षमता है । बाध्यकारी व्यवहार का लक्षण वर्णन दवाओं के तर्कसंगत डिजाइन के साथ-साथ मौलिक जैव रासायनिक प्रक्रियाओं को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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