जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय परिसर स्थित प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भइया) भौतिकीय अध्ययन एवं शोध संस्थान के रसायन विज्ञान के दो शिक्षकों डॉ. दिनेश कुमार वर्मा व डॉ. मिथिलेश यादव और नैनोसाइंस सेंटर के वैज्ञानिक डॉ. सुजीत कुमार चौरसिया को कॉउंसिल ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, उत्तर प्रदेश (यू.पी.सी.एस.टी) द्वारा क्रमशः 12-12 लाख रुपये प्रोजेक्ट के अन्तर्गत शोध कार्य के लिए मिला है। इस रिसर्च ग्रांट की अवधि तीन वर्षों की होगी। डॉ. दिनेश कुमार वर्मा, ग्रैफीन के नैनोकम्पोजिट से नैनो-लुब्रीकेंट तैयार करेंगे। इस विकसित नैनो लुब्रीकेंट का उपयोग वाहनों/मशीनों के इंजन में फिसलने वाली मेटैलिक सतहों के बीच घर्षण एवं घिसाव के कारण उत्पन्न गर्मी तथा मैटेलिक क्षति को कम करने में किया जायेगा। डॉ. वर्मा ने बताया कि विकसित लुब्रीकेंट पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ बहुत सस्ते होंगे तथा इनके उपयोग से वाहनों/मशीनों को चलाने की लागत बहुत कम हो जायेगी और इंजन खराब होने का खतरा नहीं रहेगा उसकी समय सीमा बढ़ जाएगी। इससे पहले डॉ. वर्मा, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (बी. एच. यू.), वाराणसी, में नैनो-लुब्रीकेंट के क्षेत्र में रिसर्च कर चुके हैं।
वही डॉ. मिथिलेश यादव "जैव आधारित खाद्य फिल्म से खाद्य पदार्थों के पैकेजिंग" के विषय पर शोध करेंगे। पैकेजिंग में खाद्य बायोफिल्म का प्रयोग, पेट्रोकेमिकल पॉलिमर के उपयोग को कम करता है जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों और उत्पादों के लिए उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग के साथ-साथ पर्यावरण की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्रियों का उपयोग उत्पाद की गुणवत्ता बनाए रखने में कर सकते हैं। खाद्य जैव-फिल्में, विभिन्न उत्पादों के शेल्फ लाइफ को बढ़ाती है। चूंकि जैव आधारित खाद्य पैकेजिंग फिल्में, रसायनों और प्लास्टिक के बजाय जैव-स्रोतों (पौधे और शैवाल) पुनर्नवीनीकरण सामग्री से बनाई जाती है, इसलिए वे पर्यावरण के लिए बेहतर होती है। सक्रिय पैकेजिंग खाद्य फिल्मों को तैयार करने के लिए आवश्यक तेलों को अक्सर बायोपॉलिमर में शामिल किया जाता है जो बैक्टीरिया के विकास को रोकते हैं और इस तरह भोजन को खराब होने से बचा सकते हैं। डॉ. यादव इससे पहले दक्षिण कोरिया और ताइवान में बायो-पॉलीमर बेस्ड थिन-फिल्म का निर्माण करके खाद्य पैकेजिंग के क्षेत्र में उपयोग कर चुके हैं।
इसी क्रम में, रज्जू भइया संस्थान में स्थित नैनो-साइंस सेंटर के वैज्ञानिक डॉ. सुजीत कुमार चौरसिया, पॉलीमर व बायोमास के अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग करके सुपरकैपेसिटर बनायेंगे, जिनका उपयोग मोबाइल, लैपटॉप, से लेकर इलेक्ट्रिक कारों तक में किया जा सकता है। डॉ. चौरसिया ने बताया कि इस सुपरकैपेसिटर को भविष्य में बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रिक व्हीकल में बैटरी के स्थान पर इस्तेमाल किया जा सकेगा जो बहुत ही कम टाइम में चार्ज हो जाता है और इसका उपयोग बहुत देर तक किया जा सकता है। डॉ. चौरसिया इससे पहले यूनिवर्सिटी ऑफ़ वारमिआ, पोलैंड व दिल्ली विश्वविद्यालय में पॉलीमर बेस्ड हल्के एवं लचीले कम्पोजिट पदार्थ का निर्माण करके सोडियम-आयन रिचार्जेबल बैटरी व सुपरकैपेसिटर सम्बंधित शोध कार्य कर चुके है।
इस उपलब्धि पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने तीनों शिक्षकों को बधाई दी तथा यह उम्मीद जताई की भविष्य में रज्जू भैया संस्थान विज्ञान क्षेत्र में पूर्वांचल विश्वविद्यालय को विश्व पटल पर स्थापित करेगा। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक प्रो. देवराज सिंह, डॉ. प्रमोद कुमार यादव, डॉ. प्रमोद कुमार, डॉ. नितेश जायसवाल, डॉ. अजीत सिंह, डॉ. श्याम कन्हैया सिंह, डॉ.आशीष वर्मा, डॉ. श्रवण कुमार, डॉ. दीपक मौर्य, डॉ. काजल कुमार डे, डॉ. धीरेन्द्र कुमार चौधरी, डॉ. अलोक वर्मा, सौरभ कुमार सिंह, संदीप वर्मा समेत विश्वविद्यालय के समस्त शिक्षकों ने बधाई दी।
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