हिंदी ने वैश्विक स्तर पर लहराया संस्कृति का परचम: डॉ. प्रकाश चन्द्र वरतुनिया
जीवन का कोई भी पक्ष संस्कृति से अलग नहीं: प्रो. आनंद कुमार सिंह
अन्तरराष्ट्रीय महाकुंभ के मंथन से निकलेगा ज्ञान का अमृतः प्रो. निर्मला एस. मौर्य
दो दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार का आर्यभट्ट सभागार में हुआ उद्घाटन
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में सामासिक संस्कृति के संवाहक: भाषा, साहित्य और मीडिया विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शुक्रवार को उद्घाटन सत्र शुरू हुआ। यह सत्र ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों मोड में चला। इसमें विश्व के कई देशों के शिक्षकों और साहित्यकारों ने प्रतिभाग किया।
पूर्व कुलपति प्रो. पी.सी. पातंजलि ने कहा कि हिंदी साहित्य में पूर्वांचल के साहित्यकारों का दबदबा है। साहित्य जगत को समृद्ध और विकसित करने में इनके योगदान का नकारा नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि हिंदी पत्रकारिता अगर प्रासंगिक नहीं रही तो वह चुनौतियों से नहीं लड़ सकती। अटल बिहारी सम्मान से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार प्रो. आनंद कुमार सिंह ने कहा कि सामासिक संस्कृति बहुत सारी संभावनाओं को समेटे हुए है। जीवन का कोई भी ऐसा पक्ष नही हो सकता जो संस्कृति से अलग हो। संस्कृति के निर्माण की प्रक्रिया मानव की विकास यात्रा से जुड़ी है। संस्कृतियों में जो विश्वास है, उसका अनुकूलन और मतांतरण निरंतर चलता आया है।
अध्यक्षता करतीं हुई विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय विद्वानों के इस महाकुंभ के मंथन से जो ज्ञान का अमृत निकलेगा वह इस विश्वविद्यालय के साथ-साथ विश्व से आने वाले प्रतिभागियों के लिए भी लाभप्रद रहेगा। ऐसे मंच संस्कृति के आदान-प्रदान के साथ विचारों और ज्ञान का भी संवर्धन करते है। मीडिया की भूमिका पहरेदार की तरह है जो कि घटनाओं का संवाहक बनकर हम लोगों तक सूचनाओं का संप्रेषण करती है। प्रसिद्ध साहित्यकार एवं आलोचक प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि भाषा जोड़ने और तोड़ने दोनों का काम करती है। सामासिक संस्कृति के सामने भाषा चुनौती है। साहित्य सामासिक की संवाहक तो है लेकिन मीडिया आक्रामकता और व्यावसायिकता के दौर से गुजर रही है।
प्रख्यात साहित्यकार और सहायक निदेशक आकाशवाणी प्रसार भारती डॉ. नीरजा माधव ने कहा कि सामासिक संस्कृति भारत में ही देखने को मिलती है। विश्व के अन्य किसी देश में ऐसी संस्कृति देखने को नहीं मिलती है। भारतीय संस्कृति समन्वित और साझेदारी की संस्कृति है। इस संस्कृति को समझने का आधार भाषा है। हमारी संस्कृति जीवन जीने की कला बनाती है।
पीएनबी के मंडल प्रमुख राजेश कुमार ने कहा कि शिक्षण संस्थाएं समाज को जोड़ने का काम करती है। इस अंतरराष्ट्रीय सेमिनार से जिले के लोगों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। हमारा बैंक इस तरह के कार्यक्रम में हमेशा सहायक बनेगा। सेमिनार के आयोजन सचिव डा. मनोज मिश्र ने विषय प्रवर्तन किया। स्वागत भाषण प्रो. मानस पांडेय ने संचालन डॉ. प्रमोद कुमार श्रीवास्तव और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अविनाश पाथर्डीकर ने किया। सेमिनार में प्रमुख रूप से वित्त अधिकारी संजय राय, परीक्षा नियंत्रक वीएन सिंह, पीएनबी के मैनेजर राम बहादुर, एचडीएफसी के वाइस प्रेसीडेंट मनोज राय, मनीष तिवारी, प्रो. बीबी तिवारी, प्रो. वंदना राय, प्रो. अजय द्विवेदी, प्रो. अशोक कुमार श्रीवास्तव, प्रो. देवराज सिंह, डॉ प्रमोद कुमार यादव, डॉ नीतेश जायसवाल, डॉ धीरेंद्र चौधरी, डॉ रसिकेश, डॉ. विनय वर्मा, डॉ. अनु त्यागी, डॉ लक्ष्मी प्रसाद मौर्य, नंदकिशोर सिंह, रमेश यादव, डॉ. पीके कौशिक आदि ने प्रतिभाग किया।दो दिवसीय अंतर्विषयक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में तीन पुस्तकों का विमोचन किया गया। इन पुस्तकों में गीता सिंह की भाषा और लिपि पर पुस्तक, शशिकला की साहित्य शास्त्र पर पुस्तक और डॉ प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की राष्ट्रीय काव्यधारा की पुस्तक शामिल है।द्विदिवसीय अंतर्विषयक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में तीन सत्रों के माध्यम से ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों मोड में शोधार्थियों ने अपना पेपर प्रस्तुत किया। प्रथम सत्र का संचालन प्रो. विनय कुमार दुबे और धन्यवाद ज्ञापन नितेश जायसवाल, दूसरे सत्र का संचालन डॉ शशिकला जायसवाल और धन्यवाद ज्ञापन डॉ धीरेंद्र चौधरी ने किया।
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