विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के अवसर पर अधिष्ठाता छात्र कल्याण कार्यालय एवं व्यावहारिक मनोविज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों, कर्मचारियों एवं शिक्षकों के लिए आत्महत्या रोकथाम पर जन जागरूकता कार्यक्रम एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया.विद्यार्थियों द्वारा 'आत्महत्या: कौन जिम्मेदार' पर एक लघु नाटक का मंचन किया गया. नाटक के माध्यम से आत्महत्या न करने का संदेश दिया गया.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि परीक्षा नियंत्रक डॉ. विनोद कुमार सिंह ने कहा कि संघर्ष और आत्मविश्वास का जीवन में बहुत महत्व है. परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो कभी भी निराश नहीं होना चाहिए. संकायाध्यक्ष प्रो. मनोज मिश्र ने कहा कि हर इंसान का जन्म किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए हुआ है और इस उद्देश्य से आगे बढ़ते रहना चाहिए।
मुख्य वक्ता के रूप में उमानाथ सिंह सिंह मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग के डॉ. विनोद वर्मा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस वर्ष 'चेंजिंग द नॉरेटिव्स ऑन सुसाइड और स्टार्ट कन्वर्सेशन' विषय दिया गया है. विश्व में प्रतिवर्ष 7 लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते है, वहीं भारत में एक लाख सत्तर हजार लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या करते हैं. आत्महत्या करने वाले ज्यादातर लोग 30 साल से कम उम्र के होते हैं, जिनमें मुख्य रूप से पदार्थ के दुरुपयोग, तनाव, असमय किसी की मृत्यु हो जाना, ब्रेकअप आदि प्रमुख कारण है. उन्होंने बताया कि आत्महत्या को रोकने के संबंध में विभिन्न उपायों जैसे जीवन शैली में परिवर्तन, स्वस्थ आहार, दिन प्रतिदिन के जीवन में योग एवं ध्यान को सम्मिलित करना लाभकारी हो सकता है।
व्यावहारिक मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अजय प्रताप सिंह ने कहा कि आत्महत्या करने के पीछे हमारे आसपास का वातावरण जिम्मेदार होता है और इस वातावरण में अनुकूल परिवर्तन करके हम आत्महत्या जैसे जघन्य कृत्य को रोक सकते है ।
अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो. अजय द्विवेदी ने कहा कि आज हम एक परिवार में रहते हुए भी सोशल मीडिया के कारण दूर रहते है, एक दूसरे से बात नहीं करते और न ही एक दूसरे को समय दे पा रहे है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो, वह दिन दूर नही कि हर परिवार आत्महत्या जैसे कृत्य से ग्रसित होगा। संचालन रवनीत कौर, धन्यवाद् ज्ञापन डॉ. मनोज कुमार पाण्डेय ने किया. इस अवसर पर प्रो. विक्रम देव शर्मा, प्रो प्रमोद यादव, डॉ. अनु त्यागी, डॉ जान्हवी श्रीवास्तव, डॉ. सुशील कुमार, डॉ चन्दन सिंह, डॉ अलोक गुप्ता, डॉ सुधीर उपाध्याय एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे.
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