रविवार को आयोजित सत्र में निस्केयर सीएसआईआर नई दिल्ली के निदेशक डॉ मनोज कुमार पटैरिया ने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी की जानकारी को आम जन तक ले जाने का प्रयास सतत चले रहने चाहिए। विज्ञान संचार के लिए स्थानीय भाषा एवं स्थानीय लोंगो की उपयोगिता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक साक्षरता एवं न्यूनतम विज्ञान की जानकारी और समझ विकसित कर के ही हम विज्ञान प्रसार के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।उन्होंने कहा कि स्वच्छ पेय जल का सेवन हमें अस्सी प्रतिशत बीमारियों से बचाता है।हमारे परंपरागत ज्ञान में पेय जल को सूती कपड़े से छान कर पीने की परम्परा रही है। महंगे वाटर प्यूरीफायर की जगह हम परम्परागत आजमाए गए तरीकों को अपनाकर बहुत सारी बीमारियों से बच सकते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की दैनिक जीवन में अहम भूमिका है। विज्ञान संचार से लोगों के जीवन स्तर को बदला जा सकता है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजेंद्र कुमार सिंह ने क्लीन एनर्जी मेटेरियल एंड डिवाइसेस विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि आज उर्जा का संरक्षण करने की जरूरत है इसके साथ ही पर्यावरण को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन द्वारा शीघ्र ही उर्जा के लिए हमें नए स्रोत प्राप्त होंगे।
राजस्थान विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ सी.एस. पति त्रिपाठी ने नैनो मैटेरियल फॉर रिन्यूवल एनर्जी एंड वाटर प्यूरिफिकेशन पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में उर्जा व जल का संकट गहराने जा रहा है। हम आर ओ वाटर का प्रयोग करते हैं जो कि बहुत शुद्ध पानी है। लेकिन इस इस से पानी की बर्बादी बहुत होती है। आज नैनो मैटेरियल के माध्यम से जल की बर्बादी के बिना जल का शुद्धिकरण किया जा सकता है।
शहडोल से आए डॉक्टर गिरधर माथंकर ने कहा कि विश्वविद्यालय में विज्ञान और तकनीकी के विकास के लिए इको फ्रेंडली कैंपस बनाने की जरूरत है। आईटी का इस्तेमाल करके यहां की कार्य संस्कृति में सुधार लाया जा सकता है। उन्होंने गोमूत्र एवं नीम के उपयोग के बारे में बताया।
केंद्रीय विश्वविद्यालय सारनाथ के डॉ. प्रवीण प्रकाश ने कहा कि प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत में चित्रकला बहुत ही समृद्ध रही है। आज भारतीय सांस्कृतिक धरोहर में सांस्कृतिक पाठ्यक्रम शुरू करने की जरूरत है। इससे भारतीय संस्कृति , इतिहास व कला के बारे में सही ज्ञान प्राप्त होगा और सुदृढ़ सांस्कृतिक दृष्टिकोण बनेगा।
पुणे के प्रो वीए तभाने एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर केपी सिंह ने भी विषय पर अपने विचार रखे।
अंतिम सत्र में डिप्लोमा इन फार्मेसी, एम फार्मा, होम्योपैथिक, गौ विज्ञान व फाइन आर्ट्स विषयों के प्रारंभ करने पर चर्चा हुई। जिसमें डॉ. मनोज पटैरिया , डॉ ए के श्रीवास्तव, प्रो वीए तभाने , डॉ गिरधर माथंकर, डॉ वाई पी कोहली, डॉ पुनीत सिंह एवं डॉ अजय द्विवेदी ने विचार विमर्श किया।
विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ पीसी पातंजलि ने पहले सत्र की अध्यक्षता की एवं संचालन प्रो बीबी तिवारी ने किया।
इस अवसर पर डॉ अरविंद कुमार तिवारी, डॉ युधिष्ठिर यादव,डॉ अलोक गुप्त,डॉ देवराज सिंह ,प्रियंका अवस्थी ,डॉ प्रमोद यादव,डॉ अनिल यादव ,डॉ गिरिधर मिश्र,डॉ धर्मेंद्र सिंह ,डॉ राजीव प्रकाश सिंह,डॉ. समर बहादुर सिंह, डॉ. विजय कुमार सिंह,डॉ ए के श्रीवास्तव, डॉ. देवराज सिंह, डॉ. अजय प्रताप सिंह, डॉ राजकुमार सोनी, डॉ. संतोष कुमार सहित प्रतिभागी मौजूद रहे।
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