नार्वे में खबर के साथ स्रोत देना भी जरूरी : सुरेश चंद्र शुक्ल
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर सात दिवसीय कार्यशाला का तीसरा दिन
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर एवं गुरु नानक कॉलेज स्वायत्तशासी चेन्नई के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को सात दिवसीय ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला के तीसरे दिन तृतीय तकनीकी सत्र में कानून के क्षेत्र में शिक्षण, शोध एवं रोजगार सृजन में मातृभाषा की उपादेयता विषय पर भूतपूर्व न्यायाधीश उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा मंगल प्रसाद ने कहा कि हिन्दी भाषा के कई शब्द बहुत क्लिष्ट है जैसे रेलवे को लौहपथगामिनी कहना कठिन है ऐसे में हम रेलवे को ही स्वीकार कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि मातृभाषा का भाव व्यक्ति को दिल से जोड़ता है। उन्होंने समाचार पत्र, पत्रिका और किताब के प्रकाशन के संबंध में विधिक जानकारी पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने विधि के क्षेत्र में शिक्षण, शोध और रोजगार के क्षेत्र में मातृभाषा की उपादेयता और उपयोगिता के महत्व को समझाया।
उन्होंने कहा कि न्यायालयों में मातृभाषा के प्रयोग को मान्यता मिलनी चाहिए क्यूंकि जो क्रिया अंग्रेजी में हो सकती है वो मातृभाषा में भी हो सकती है |
पत्रकारिता में मातृभाषा की उपादेयता विषय पर स्पाइल दर्पण एवं ओस्लो यूरोप नार्वे के संपादक सुरेश चंद्र शुक्ल ने कहा स्थानीय भाषा में पत्र की पठनीयता ज्यादा होती है। उन्होंने नार्वे का उदाहरण देते हुए कहा कि यहां बिना स्रोत के ना तो खबर ना ही फोटो प्रकाशित होती है। दोनों पर स्रोत देना जरूरी है। उन्होंने मातृभाषा में प्रकाशित समाचार पत्रों के बारे में विस्तार से बताया। पूरे कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर निर्मला एस.मौर्य जुड़ी रहीं। विशिष्ट अतिथि के रूप में हर्षवर्धन त्रिपाठी जी कार्यशाला में थे।
कार्यशाला डॉ. मनोज कुमार पांडेय और डॉ. डाली के संयोजकत्व में आयोजित है। संचालन डॉ मनोज पांडेय और धन्यवाद ज्ञापन गुरु नानक महाविद्यालय की डॉ. अनिता पाटील ने किया।
इस अवसर पर प्रो. बीबी तिवारी प्रो. वंदना राय, प्रो.देवराज सिंह, डॉ. मनोज मिश्र, डॉ. रसिकेश, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. दिग्विजय सिंह राठौर, डॉ अवध बिहारी सिंह, डॉ धीरेन्द्र चौधरी, मंगल प्रसाद यादव, श्रीमती गुड़िया चौधरी, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से रेखा वर्मा, डॉ. विजय पाटिल आदि ने प्रतिभाग किया।
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