
परिचर्चा
में छात्र अंकित जायसवाल ने इंटरनेट के माध्यम से लोकप्रिय हो रही हिन्दी
पर अपनी बात रखी वहीं छात्रा शायली मौर्या ने कविता के माध्यम से कहा कि
क्या करें हम अंग्रेजों से अपेक्षा, जब हम खुद ही भूल जा रहे है अपनी
मातृभाषा... हिन्दी के दर्द को बयां किया। छात्र धर्मपाल यादव ने कहा कि
अनुवाद के कारण हमें आज अन्य भाषा के साहित्य एवं ज्ञान हिन्दी में उपलब्ध
हो पा रहा है। इसलिए दूसरी भाषा का ज्ञान बुरा नहीं है बल्कि अपनी भाषा से
दूरी बुरी है। संचालन छात्र गौरव सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन मनीष श्रीवास्तव
ने किया। परिचर्चा में विभाग के नरेंद्र गौतम, श्रेष्ठा सिंह, सौम्या
श्रीवास्तव, राहुल शुक्ला, संजीव कुमार, एहसान हाशमी ने अपनी बात रखी।
इस अवसर पर डा. मनोज मिश्र, डा. दिग्विजय सिंह राठौर, डा. अवध बिहारी सिंह, डा. सुनील कुमार, पंकज सिंह मौजूद रहे।
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