Sunday 29 October 2017

तीन दिवसीय सम्मेलन में दूसरे दिन वक्ताओं ने किया विचार मंथन



 विश्वविद्यालय में दीनदयाल उपाध्याय जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित भारतीय विश्वविद्यालय शिक्षा पद्धति विषयक तीन दिवसीय सम्मेलन में रविवार को दूसरे दिन वक्ताओं ने विचार मंथन किया।

इंजीनियरिंग संस्थान के विश्वेसरैया हाल में उच्च शिक्षा पद्धति में बदलाव, उच्च शिक्षा के प्रति पंडित दीनदयाल उपाध्याय का दृष्टिकोण, एकात्म मानववाद और शिक्षा पद्धति विषयों पर तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। हिमांचल  प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने कहा कि अगर हिंदुस्तान को विश्वगुरु बनाना है और 125 करोड़ लोगों के अंदर ताकत पैदा करनी है तो शिक्षा की पद्धति को भारतीय भाषाओं में करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हमारी विश्वविद्यालय में शिक्षा पद्धति ऐसी बने जिससे छात्रों के मन में प्रश्न पैदा हो और विद्यार्थी उसके उत्तर ढूंढने के लिए व्याकुल हो जाए।


सामाजिक चिंतक -विचारक एवं वरिष्ठ संघ प्रचारक  रत्नाकर ने कहा कि भारतीय समाज का चिंतन, मूल्य, संस्कृति एवं अवधारणा भारतीय शिक्षा का आधार होगी तब जाकर हम दुनिया का मार्गदर्शन कर सकेंगे। आज के समय में हमें समीक्षा करने के साथ-साथ चिंतन करने की आवश्यकता है। कुछ मुट्ठी भर लोगों ने आर्य- अनार्य की गलत व्यख्या कर समाज में गलत सन्देश देने की कोशिश की। सबसे पहले इसका खंडन भारत रत्न बाबा साहब भीम राव  अम्बेडकर ने ही किया है। जब तक भारत का प्राचीन ज्ञान -विज्ञान पुनः प्रस्फुटित नहीं होगा तब तक विश्व का कल्याण संभव नहीं है। 



महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के मदन मोहन हिंदी पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रो ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि  शिक्षा केवल रोजगार के लिए नहीं बल्कि आत्मचिंतन, मूल्य एवं आचरण पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय को संदर्भित करते हुए कहा कि जो विद्यार्थी पैसे के बल पर डिग्री पाते हैं उनके अंदर राष्ट्रप्रेम नहीं हो सकता।



सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय  के प्रोफेसर पी एन सिंह ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में एकात्म मानववाद एक अनुपम प्रयोग है। एकात्म मानववाद पर आधारित शिक्षा व्यवस्था केवल पाठ्यक्रमों पर आधारित सूचनाओं का आदान प्रदान करने वाली शिक्षा व्यवस्था नहीं है बल्कि इसके कि केंद्र में विद्यार्थी का संपूर्ण व्यक्तित्व है।

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की प्रोफेसर कल्पलता पांडेय ने कहा कि उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के समय शिक्षकों को विद्यार्थियों द्वारा पूरे वर्ष की गई मेहनत को ध्यान में रखना चाहिए बिना पढ़े मूल्यांकन करना एक बड़ा अपराध है।
सामाजिक कार्यकर्ता सुनील भराला ने कहा कि वर्तमान शिक्षा पद्धति में संस्कार का अभाव है। शिक्षा व्यवस्था राष्ट्रीय सोच की होनी चाहिए।उन्होंने कहा कि ऐसी शिक्षा व्यवस्था बने जिससे देश के अंतिम नागरिक शिक्षित हो सके।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भौतिकी के पूर्व प्रोफेसर राम गोपाल ने कहा कि आज शिक्षा का निजीकरण हो गया है। अधिकांश महाविद्यालयों में मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है।उन्होंने कहा कि जब प्राथमिक शिक्षा मजबूत होगी तब उच्च शिक्षा में अच्छे विद्यार्थी आएंगे। 
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डॉ राजाराम यादव ने वक्ताओं को स्मृति चिन्ह  देकर सम्मानित किया। सत्र में संचालन डॉ. मुराद अली एवं धन्यवाद ज्ञापन संयोजक डॉ अविनाश पाथर्डीकर ने किया. दूसरे दिन आयोजित सत्र में शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने भी अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
सम्मेलन में डॉक्टर बी डी शर्मा, डॉक्टर जगदीश सिंह दीक्षित, शतरुद्र प्रताप सिंह , डॉक्टर अजय द्विवेदी, डॉ राजेश शर्मा,  डॉ आशुतोष सिंह ,डॉक्टर ए के श्रीवास्तव, डॉक्टर एस पी तिवारी, डॉ आर एन ओझा, डॉक्टर मनोज मिश्रा ,डॉक्टर दिग्विजय सिंह राठौर, डॉक्टर सुनील कुमार, डॉ अमरेंद्र सिंह, डॉक्टर सुशील सिंह, डॉ आलोक सिंह, डॉक्टर विवेक पांडे, डॉक्टर सुधीर उपाध्याय, शैलेश प्रजापति, परमेन्द्र विक्रम सिंह  समेत तमाम लोग मौजूद रहे ।

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